पश्चिम बंगाल के सबसे प्रतिष्ठित कला रूपों में से एक हैंए बांकुरा के घोड़े। इनका उपयोग धार्मिक और सजावटी दोनों उद्देश्यों के लिए किया जाता है। वे टेराकोटा शिल्प कौशल का उत्कृष्ट नमूना हैंए इनकी पहचान सीधी खड़ी गर्दन और नुकीले कानों से होती हैं। ये घोड़े आम तौर पर छह इंच से लेकर चार फीट की ऊंचाई के होते हैं और इनके जबड़े चौड़े होते हैं। आप पश्चिम बंगाल के बिष्णुपुरए नाकाजुरीए कामारडीहा और बिबोदा इलाके से इन्हें खरीद सकते हैं।इन घोड़ों को बनाने की प्रक्रिया काफी जटिल है। बांस और पत्थर के औजारों का उपयोग शरीर के अंगों जैसे चार पैरए एक लंबी गर्दनए चेहराए कानए पूंछ आदि को बनाने एवं तराशने के लिए किया जाता है। शरीर के कुछ हिस्से अलग से बनाए जाते हैं और फिर उन्हें गीली मिट्टी का उपयोग कर मुख्य शरीर के साथ जोड़ दिया जाता है। सुंदर दिखने के लिए इनकी पूरी देह को चिकना किया जाता है। इसके बाद इसके अन्तिम रूप को धूप में सुखा करए भट्ठी में पकाया जाता हैए और फिर रंगा जाता है।बंगाल में प्राचीन काल से ही बांकुरा के घोड़ों का उपयोग पूजा एवं धार्मिक समारोहों में किया जाता रहा है। माना जाता है कि बिष्णुपुर से लगभग 16 मील दूर पंचमुरा के कुम्हारों ने सबसे पहले इन घोड़ों को बनाया था। उनका उपयोग भगवान धर्मराज के रथ में किया जाता हैए जिनकी सूर्य देवता के रूप में पूजा की जाती है। यही कारण है कि बहुत से लोग इन घोड़ों को अपने घरों में रखना पवित्र मानते हैं।

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