अगर पत्थर बोल पाते, तो खजुराहो के मंदिरों में राग उत्पन्न होता! मध्य प्रदेश के विंध्य पर्वत श्रृंखला से घिरा हुआ खजुराहो शहर के मंदिर, जहां हिंदू और जैन पूजा घर शामिल हैं, यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल सूची का हिस्सा हैं, जिससे यह ऐतिहासिक स्थल विश्वभर के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। यह मन्दिर अपनी आश्चर्यजनक तेजस्वी मूर्तियों के चित्रण के लिए विख्यात है। इन मूरतों में जीवन के विभिन्न पहलु जैसे आध्यात्मिकता, प्रेम, मित्रता, खेल, राजसी गौराव और सबसे महत्वपूर्ण, कला की विस्मयकारी झलक छुपी हुई है। भौगोलिक आधार पर मंदिरों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया गया है: पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी। माना जाता है कि इसका निर्माण लगभग 100 वर्ष अर्थात 950-1050 ईसवी के बीच हुआ। प्रारंभिक 85 मंदिरो के समूह से अब सिर्फ 22 मंदिरो का समूह मिलता है। सदियों तक विस्मृत खजुराहो की खोज 1850 के दशक में की गयी और इसका पुनरोत्थान किया गया।

खजुराहों के मंदिरों की संकल्पना और निर्माण चंद्र राजवंश के शासनकाल में की गयी थी। मंदिरों की दीवारों पर अलंकृत शिल्पकारिता को देखकर लगता है कि मूर्तियां अभी बोल पडेंगी और कलात्मक कृतियों की वह झलक जीवन, प्रेम और आनन्द का स्रोत बन जाती हैं।इस शहर के नाम के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। कहा जाता है कि जब चन्देल साम्राज्‍य ने मंदिरो का निर्माण शुरू किया, तो सारे इलाके को दीवारों से घेर लिया गया था। उसके आठ द्वार थे और उनके दोनों ओर खजूर के पेड़ हैं। इस क्षेत्र में खजूर बहुतायत में पाए जाते हैं। इस प्रकार मंदिर को खजूर वाटिका या खजुरा कहा जाने लगा।