गढ़वाल स्कूल आफ पेंटिग्स, एक ऐसी पारंपरिक कला है जिसने भारत के इतिहास और प्राचीन परंपराओं के बीच अपना एक महत्वपूर्ण स्थान दर्ज किया है। चित्रकला की यह शैली मुख्य रूप से प्राकृतिक तत्वों जैसे नीले आसमान और चांदी से चमकते पहाड़ों से प्रेरित है। कहा यह भी जाता है कि इस शैली की शुरूआत 17वीं शताब्दी में उस समय हुई जब निष्कासित किये जा चुके मुगल शहजादे सुलेमान शिकोह ने इस राज्य में अपने दो राजकीय चित्रकारों के साथ प्रवेश किया था। सुलेमान शिकोह, प्रसिद्ध मुगल बादशाह दारा शिकोह का बेटा था, जिसने अपना राज पाट छोड़ दिया था। मुगल कला में पारंगत उसके यह दो चित्रकार भी उसके साथ हो लिये थे। समय बीतने के साथ-साथ उन दोनों चित्रकारों की शैली, स्थानीय चित्रकारों की शैली के साथ घुलने-मिलने लगी, जिससे इस गढ़वाली शैली की चित्रकारी का जान्म हुआ। प्रसिद्ध कवि और चित्रकार मूलाराम को इस शैली के सबसे बड़े सर्मथक के रूप में जाना जाता है। 

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