भित्तिचित्र

महत्वपूर्ण तथा पवित्र स्थानों की दीवारों पर उकेरे गये भित्तिचित्र दरअसल इस क्षेत्र के आध्यात्म और सौंदर्य को परिलक्षित करते हैं। मंदिरों में उकेरे गये भित्तिचित्र इतने विस्तृत और खूबसूरत ढंग से बनाए गये हैं कि देखने वालों की नजरें नहीं हटतीं। यहां एपण शैली में बने भित्तिचित्र भी सभ्यता का एक महत्वपूर्ण एवं अभिन्न अंग हैं। एपण कला, दीवार या फर्श पर बने चित्रों को कहते हैं, जिन्हें भित्तिचित्रों का ही एक अंग माना जाता है। इस शैली के अंतर्गत बेहद साधारण लेकिन खूबसूरत तरीके से ज्यामितिक आकृतियों को उकेरा जाता है और साथ ही प्रकृति से प्रेरित डिजाइन भी बनाए जाते हैं। सबसे विस्तृत आकृति लाल रंग से पुते हुए फर्श पर चावल के पेस्ट से बनाई जाती है, जो बेहद पवित्र और खास मानी जाती है। किसी भी त्यौहार या उत्सव के मौके पर घरों को एपण से सजाना इस राज्य की परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 

भित्तिचित्र

चित्रकारी

गढ़वाल स्कूल आफ पेंटिग्स, एक ऐसी पारंपरिक कला है जिसने भारत के इतिहास और प्राचीन परंपराओं के बीच अपना एक महत्वपूर्ण स्थान दर्ज किया है। चित्रकला की यह शैली मुख्य रूप से प्राकृतिक तत्वों जैसे नीले आसमान और चांदी से चमकते पहाड़ों से प्रेरित है। कहा यह भी जाता है कि इस शैली की शुरूआत 17वीं शताब्दी में उस समय हुई जब निष्कासित किये जा चुके मुगल शहजादे सुलेमान शिकोह ने इस राज्य में अपने दो राजकीय चित्रकारों के साथ प्रवेश किया था। सुलेमान शिकोह, प्रसिद्ध मुगल बादशाह दारा शिकोह का बेटा था, जिसने अपना राज पाट छोड़ दिया था। मुगल कला में पारंगत उसके यह दो चित्रकार भी उसके साथ हो लिये थे। समय बीतने के साथ-साथ उन दोनों चित्रकारों की शैली, स्थानीय चित्रकारों की शैली के साथ घुलने-मिलने लगी, जिससे इस गढ़वाली शैली की चित्रकारी का जान्म हुआ। प्रसिद्ध कवि और चित्रकार मूलाराम को इस शैली के सबसे बड़े सर्मथक के रूप में जाना जाता है। 

चित्रकारी

एपण

रंगोली बनाने की यह एक ऐसी विशिष्ट कला है, जिसमें घरों के दरवाजों पर फूलों की पत्तियों, रंगे हुए चावलों और आटे से खूबसूरत आकृतियां उकेरी जाती हैं। वैसे सबसे ज्यादा रंगोली लाल फर्श पर सफेद चावल के पेस्ट से बनाई जाती है। इस शैली में बनाई जाने वाली रंगोली के अधिकांश डिजाइंस प्रकृति से प्रेरित होते हैं, लेकिन ज्योमितिक आकृतियों का भी भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। लगभग हर कुमाऊंनी महिला को यह कला विरासत में मिलती है। यह रंगोली इतनी पवित्र मानी जाती है कि लोगों का विश्वास है कि जिन घरों के आगे इसे बनाया जाता है, वहां बुरी शक्तियां प्रवेश नहीं कर पातीं। इसीलिए अक्सर यहां के लोग अपने घरों के भीतर बने मंदिरों को भी एपण से सजाते हैं। 

एपण

लकड़ी पर उकेरी गयी शानदार नक्काशी

पर्वतीय क्षेत्रों की परंपरागत कलाओं में काष्ठ कला का प्रमुख स्थान रहा है। यहां आने वाले पर्यटक विभिन्न मंदिरों में भम्रण के दौराम यह बात अच्छी तरह देख सकते हैं। इन मंदिरों में स्थानीय संस्कृति और सभ्यात की पूरी पूरी झलक दिखाई देती है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण प्रसिद्ध कटारमल सूर्य मंदिर है, जिसके दरवाजे लड़की की खूबसूरत नक्काशी से सजे हुए हैं तथा उन पर हिन्दु धर्म से संबंधित बेहद खूबसूरत मूर्तियां उकेरी गयी हैं। शीशम की लकड़ी से बने इन दरवाजों पर उकेरी गयी यह नक्काशी 14वीं सदी से लेकर आज तक अपनी पूरी आभा के साथ दमक रही है। उस जमाने में महलों और मंदिरों के लकड़ी के दरवाजों को इसी तरह से सजाया, संवारा और खूबसूरत बनाया जाता था। इतिहासकारों के अनुसार खूबसूरत नक्काशी से सजे तथा लकड़ी से बने यह द्वार पूर्वी भारत के मंदिरों में लड़की पर उकेरी जाने वाली नक्काशी का सबसे शानदार उदाहरण हैं जो कि हिमालयी क्षेत्रों की परंपरागत शिल्प कला की झलक देते हैं। 

लकड़ी पर उकेरी गयी शानदार नक्काशी

मंदिरों की शानदार वास्तु

उत्तराखंड पर शासन करने वाले सभी शासकों ने यहां विशाल मंदिरों का निर्माण करवाया, जिन्हें बनवाने में लकड़ी और पत्थर का जमकर इस्तेमाल किया गया। यहां के मंदिरों में शानदार नक्काशी भी बखूबी देखने को मिलती है। यहां उकेरी गयी रंग-बिरंगी आकृतियों को एपण कला से संवारा गया है, जिसमें खूबसूरत रंगों का इस्तेमाल प्रमुखता से किया जाता है। यहां के मंदिरों में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियां मुख्यतः धातु या पत्थर से बनाई गयी हैं और उन्हें सबसे खूबसूरत और बेहतरीन वस्त्रों एवं आभूषणों से सजाया गया है उत्तराखंड के अधिकांश मंदिर नागर शैली या गढ़वाली शैली में बनाए गये हैं, जिनमें मंदिरों के शिखर को सजाने पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस शैली में बने मंदिरों की छत आमतौर पर कमल की आकृति लिये होती है और छोटे शिखर पर शेर या हाथी के मूर्ति उकेरी जाती है। इस क्षेत्र में बनाए गये सभी मंदिरों में कत्यूरी, पवार, पौण और चंद राजवंश की वास्तुकला की झलक मिलती है। उत्तराखंड में स्थित विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर ऐसी ही नायाब वास्तु-कला का खूबसूरत उदाहरण है। इसी प्रकार यहां स्थित मशहूर बैजनाथ मंदिर भी नागर शैली में बना हुआ है, जो अपने वक्रीय शिखरों के लिए जाना जाता है। कत्यूरी शासकों द्वारा बनवाई गयी मूर्तियां और खूबसूरत वास्तु शैली से सजे यह मंदिर उस दौर की छाप लिये दिखते हैं। उस समय में बने मंदिरों की तरह यह सब मंदिर भी पंचरथ योजना के आधार पर बनाए गये हैं। 

मंदिरों की शानदार वास्तु