तिरुचेन्दूर शहर तिरुचेन्दूर मुरुगन मन्दिर और अपने प्राचीन पवित्र स्थल के लिए प्रसिद्ध है। बंगाल की खाड़ी के तट के निकट स्थित इस मन्दिर के प्रमुख देवता भगवान सुब्रमण्य हैं। कथाश्रुति है कि भगवान मुरुगन ने शूरपद्म राक्षस को युद्ध में पराजित करने के उपरान्त इस स्थान पर भगवान शिव की आराधना की थी। भगवान मुरुगन की पत्नियों में से एक देवी वाली की एक गुफा प्रमुख मन्दिर के निकट ही स्थित है। एक अन्य देवता भगवान दत्तात्रेय की भी यहाँ आराधना की जाती है। 1646 से 1648 के बीच पुर्तगालियों के साथ युद्धरत डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इस मन्दिर पर कब्जा कर लिया था। यद्यपि स्थानीय लोगों ने इस मन्दिर को उनके कब्जे से मुक्त कराने का प्रयास किया किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। नायक शासक के आदेश पर बाद में डचों ने मन्दिर को छोड़ दिया। किन्तु इसे छोड़ने से पहले डच मुख्य देवता की मूर्ति को उखाड़कर अपने साथ ले गये। जनश्रुति है कि अपनी समुद्री यात्रा के दौरान वे एक भयंकर तूफान में फँस गये और उन्हें देवता की मूर्ति ले जाने की गलती का अहसास हुआ। उन्होंने तुरन्त उस मूर्ति को बीच समुद्र में फेंक दिया और तूफान शान्त हो गया। बाद में भगवान मुरुगन के एक महान आराधक वदामलियप्पा पिल्लई ने एक स्वप्न देखा जिसमें उन्हें मूर्ति के स्थान की सटीक जानकारी दी गयी। मन्दिर के एक सेवादार अतिथ नायर के सहयोग से पिल्लई एक नाव से उस स्थान पर गये और 1653 ई. में उस मूर्ति को वापस लाए। मन्दिर के परिसर में इस घटना का चित्र प्रदर्शित है। मन्दिर में अक्टूबर-नवम्बर के महीने में स्कन्द त्यौहार के अवसर पर भारी भीड़ एकत्रित होती है। तुरुचेन्दूर मुरुगन मन्दिर समुद्र से मात्र 200 मीटर की दूरी पर स्थित है और आश्चर्य है कि यहाँ कभी समुद्र का पानी नहीं पहुँचता है। इस मन्दिर में भगवान शिव और भगवान विष्णु के एक साथ अनेक स्वरूप विद्यमान हैं।

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