1892 में बना यह शानदार मकबरा गोथिक प्रभावों वाली भारतीय-इस्लामिक वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। आज जूनागढ़ की पहचान समझे जाने वाले स्थलों में से एक, इस मकबरे का निर्माण 1878 में जूनागढ़ के नवाब रहे महावत खानजी ने शुरू करवाया था। उनके उत्तराधिकारी बहादुर खानजी ने 1892 में इसे पूरा करवाया। इसके ऊर्ध्वाधर खंभे, खिड़कियां, बारीक नक्काशी वाली पत्थर की दीवारें और उम्दा डिजाइन वाले मेहराब देखते ही बनते हैं। इस मकबरे की विशेषता इसकी मीनारों और विभिन्न आकारों वाले गुंबदों को घेरती घुमावदार सीढ़ियां हैं। यह मकबरा पीले रंग का है और इसके गुंबद प्याज के आकार के हैं। आमतौर पर यह परिसर बंद रहता है लेकिन इससे सटी हुई जामा मस्जिद के प्राधिकारियों से अनुमति लेकर इसे देखा जा सकता है। यह मस्जिद भी अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला के चलते एक दर्शनीय स्थल है।

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