जबलपुर की सम्द्ध सांस्कृतिक धरोहर यहां की कलाओं और शिल्प में साफ झलकती है। कालीनों से लेकर दरियों और विभिन्न नृत्य-शैलियों को समेटे जबलपुर में बहुत कुछ खरीदा और देखा जा सकता है।

दरी बुनना

अलग-अलग मोटाई के सूती धागों से बुनी जाने वाली ‘दरी’ एक किस्म का हल्का कालीन होती है जो इस इलाके में काफी लोकप्रिय है। सजावटी दरियों को दीवार पर भी टांगा जाता है। गांवों में बहुत सारे परिवार दरी बुनने का काम करते हैं। दरी पर आमतौर ज्यामितीय आकार, जानवरों की आकृतियां और फूल-पत्ती आदि उकेरे जाते हैं। अपने रंग-बिरंगे डिजाइन और आसान रखरखाव के चलते दरियां काफी लोकप्रिय हैं।

फूलपत्ती नृत्य

कुंवारी लड़कियों द्वारा किया जाने वाला यह नृत्य होली के दौरान आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों का हिस्सा होता है। यह मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र से संबद्ध है।

मटकी नृत्य

पारंपरिक वेशभूषा में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला मटकी नृत्य काफी मुश्किल है क्योंकि इसमें स्त्रियां अपने सिर पर मटकियां रख कर संतुलन बना कर ढोल की ताल पर नाचती हैं। इसे देख कर काफी आनंद मिलता है। इसे घट-नृत्य भी कहा जाता है और यह नृत्य खासतौर से मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र से संबद्ध है। यह नृत्य-शैली यहां की खानाबदोश जनजातियों द्वारा विकसित की गई। स्त्रियां अपने सिर पर मटके रख कर दूर से पानी भर कर लाया करती थीं और धीरे-धीरे उन्होंने अपने इस रोजमर्रा के काम को ही एक नृत्य-शैली के तौर पर विकसित कर दिया। इसे करते समय स्त्रियां रंगीन लहंगा या साड़ी बांधती हैं और बहुत सारे खूबसूरत आभूषण पहनती हैं। कई बार वह अपने चेहरे को ढकने के लिए घूंघट भी करती हैं।