हर की पौड़ी

हरिद्वार के पवित्रतम घाटों में से एक है, हर की पौड़ी। यहां हर साल हजारों-लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। गंगा नदी पहाड़ों से निकलने के बाद इसी स्थान पर पहली बार समतल जमीन पर बहती है। हिन्दु मान्यता के अनुसार यहां के पवित्र जल में स्नान का बहुत महत्व माना जाता है। इसलिए हर की पौड़ी पर असंख्य भक्तगण स्नान कर अपने कष्टों और पापों से मुक्ति पाते हैं। घाट के समीप ही अनेकों छोटे-बड़े मंदिर हैं, जहां से हमेशा मंत्रोच्चारण और मंदिर की घंटियों का मधुर सुनाई देता रहता है। यहां शाम के समय होने वाली गंगा आरती पर्यटकों के बीच आकर्षण का केन्द्र होती है। इस समय यहां का नजारा बहुत खूबसूरत होते के साथ-साथ तेजमय हो जाता है। शाम की गंगा आरती के समय पूरा घाट आरती करने वाले पुजारियों से भर जाता है, जो हाथों में तीन-तीन मंजिला दीपमाला लिये रहते हैं, जिनसे मां गंगा की आरती की जाती है। आरती के दौरान भक्त जब गंगा नदी में जलते हुए दीये प्रवाहित करते हैं, तो मानो लगता है कि पानी में असंख्य जुगनू तैर रहे हैं। मंत्रोच्चारण और झांझ-घड़ियालों की ध्वनि से यहां का पूरा वातावरण उस समय इतना औलोकिक हो जाता है कि आरती में शामिल हर व्यक्ति अपने आप को किसी और ही लोक में पाता है। ऐसा कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि ने गंगा नदी के तट पर कई वर्षों तक तपस्या की थी। और फिर उनकी मृत्यु के पश्चात राजा विक्रमादित्य ने उनकी याद में इस घाट का निर्माण करवाया था। उस समय इसे हरि-की-पैड़ी के नाम से पुकारा जाता था। पैड़ी का अर्थ, सीढ़ियां होता है। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव वैदिक काल में यहां आये थे और भगवान विष्णु के पद-चिन्ह भी यहां एक पत्थर पर अंकित हैं। एक मान्यता यह भी है कि विष्णुजी के पैरों के निशान की वजह से भी इस स्थान को हर की पैड़ी पुकारा जाता है। 

इसके अलावा यहां एक ब्रह्मकुंड भी है, जिसे लेकर एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत को पाने के लिए जब देवताओं और असुरों में युद्ध हुआ तो देवता हारने लगे। स्थिति बिगड़ती देख भगवान विष्णु ने एक सुंदर अप्सरा का रूप धरकर असुरों को फुसलाया कि वह अमृत, देवताओं को दे दें। जब असुरों को विष्णुजी की इस चाल का पता तो वह उनकी तरफ अमृत पान छीनने के लिए दौड़े। ऐसा माना जाता है कि इस भागदौड़ के दौरान अमृत की कुछ बूंदे पात्र से छिलक कर धरती पर उस स्थान पर जा गिरीं, जहां आज ब्रह्मकुंड है।  

हर की पौड़ी

चण्डी देवी मंदिर

नील पर्वत की चोटी पर स्थित प्राचीन चण्डी देवी मंदिर को लेकर भक्तों में अटूट आस्था देखने को मिलती है। हालांकि मंदिर में मुख्य प्रतिमा की स्थापना आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा की गयी थी, जबकि भवन का निर्माण सन 1929 में कश्मीर के राजा सुचत सिंह द्वारा करवाया गया था। चण्डी घाट से मंदिर तक पहुंचने के लिए तीन कि.मी. की पैदल यात्रा करनी पड़ती है या फिर ट्राली के जरिये भी मंदिर तक पहुंचा सकता है। इस मंदिर के बारे में एक पौराणिक कथा बेहद प्रचलित है, जिसके अनुसार एक बार शुम्भ-निशुम्भ नामक दो दानवों ने इंद्र देवता से उनका राज-पाट छीन कर उन्हें स्वर्ग से बाहर कर दिया था। तब देवी पार्वती के शरीर से चण्डिका देवी की उत्त्पत्ति हुई। शुम्भ की देवी शक्ति पर आसक्ति हो गयी, लेकिन जब देवी चण्डिका ने उसको दुत्कार दिया तो क्रोध में आकर शुम्भ ने अपने सेनानायक चण्ड और मुण्ड को देवी का वध करने के लिए भेजा, जिनका वध कालिका देवी ने कर डाला। कालिका देवी की उत्त्पत्ति मां चण्डिके के क्रोध से हुई थी। चण्ड-मुण्ड के वध के पश्चात देवी चण्डिका, स्वंय शुम्भ-निशुम्भ का संहार करने निकल पड़ीं। एक बेहद लंबे चले युद्ध के बाद देवी ने थक कर नील पर्वत पर विश्राम किया और उसी जगह आज यह प्रसिद्ध मंदिर बना हुआ है। 

चण्डी देवी मंदिर

पंतजलि योग पीठ

प्राचीन भारतीय आयुर्वेदिक एवं चिकित्सकीय पद्धति में अपना अटूट विश्वास रखने वाला प्रसिद्ध पतंजलि योग पीठ, पूरे विश्व को न केवल सभी प्रकार की बीमारियों से, बल्कि दवाओं से भी मुक्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। यहां किसी भी प्रकार की बीमारी के उपचार के लिए महर्षि पतंजलि, चरक संहिता सुश्रुत संहिता जैसी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियां अपनाई जाती हैं। पतंजलि योग पीठ (ट्रस्ट) की स्थापना स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण द्वारा 4 फरवरी, 2005 में की गयी थी।  

संस्थान ने अष्टांग योग, राज योग , ध्यान योग, हठ योग, विभिन्न आसन और प्राणायाम इत्यादि की व्यवाहरिक प्रशिक्षण दिया जाता है। संस्थान का उद्देश्य मानसिक शांति, बेहतर स्वास्थ्य और आत्मिक संतुष्टि एवं प्रसन्नता का भाव लोगों में जगाना है, जिसके लिए संस्थान द्वारा नियमित रूप से संस्थान के अंदर और बाहर, योग प्रशिक्षण कक्षाएं संचालित की जाती है, जिनका प्रसारण टेलिविजन के माध्यम से भी किया जाता है, ताकि लोग घर बैठे योग का लाभ ले सकें। संस्थान इस प्राचीन चिकित्सा पद्धति से संबंधित विभिन्न कोर्स आदि का भी संचालन करता है तथा नित नये शोध भी करता रहता है। योग और आयुर्वेद के प्रति पूरी दुनिया में जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से संस्थान पुस्तकों, अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों इत्सादि में भी हिस्सा लेता है। इतना ही नहीं योग पीठ में नेत्र विशेषज्ञ, कान-नाक-गला विशेषज्ञ, दंत विशेषज्ञ एवं सर्जरी, फिजियोथेरेपी और एक्यूप्रेशर के अलग-अलग विभाग हैं। यह संस्थान अत्याधुनिक मशीनों और उपकरणों से भी पूरी तरह से लैस है। जो पर्यटक कुछ दिन रुककर यहां के माहौल को और करीब से महसूस करना चाहते हैं, उनके लिए यहां ठहरने की भी व्यवस्था है। संस्थान में योग, आयुर्वेद और वनस्पति विज्ञान से संबंधित अनेकों पुस्तकों तथा पांडुलिपियों से समृद्ध एक पुस्तकालय भी है तथा इसके अलावा यहां एक इंटरनेट सर्फिंग सेंटर भी है।  

पंतजलि योग पीठ

मनसा देवी मंदिर

बिलवा पर्वत पर स्थित प्राचीन मनसा देवी मंदिर से पूरे हरिद्वार का बेहद सुंदर दृश्य दिखाई पड़ता है। कहा जाता है कि देवी शक्ति की उत्त्पत्ति ऋषि कश्यप के मस्तिष्क से हुई थी और देवी मनसा, शक्ति का ही स्वरूप हैं। यहां मंदिर में मां मनसा देवी की दो प्रभावशाली प्रतिमाएं विराजमान हैं, जिनमें से एक प्रतिमा में मां के तीन मुख और पांच हाथ हैं तथा दूसरी प्रतिमा में मां अष्टभुजाधारी हैं। यह मंदिर भी देशभर में फैले उन 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां देवी शक्ति के छिन्न-भिन्न शरीर के अंग गिरे थे। इसके अलावा हरिद्वार में ही चण्डी देवी और माया देवी नामक दो अन्य शक्तिपीठ भी मौजूद हैं। 

पर्यटक चाहें तो मंदिर तक पहाड़ की चढ़ाई करके जा सकते हैं, या फिर रस्सी के द्वारा चलने वाली ट्राली से भी यहां पहुंचा जा सकता है। मंदिर में ही एक प्राचीन पवित्र वृक्ष भी है, जिसके बारे में मान्यता है कि यदि कोई अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए इस वृक्ष पर मन्नत का धागा बांधता है, तो देवी उसकी मुराद जरूर पूरी करती हैं और मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु उस धागे को खोलने के लिए भी आते हैं। 

मनसा देवी मंदिर