पवाया के प्राचीन शहर का उल्लेख पुरानी किताबों एवं संस्कृत के साहित्य में मिलता है। यह पहली एवं आठवीं सदी में बने स्मारकों के खंडहरों के लिए लोकप्रिय है, जो इस क्षेत्र में उत्खन्न के दौरान पाए गए थे। ऐसा कहा जाता है कि कभी इस भव्य शहर में ऊंची हवेलियां,तथा गगनचुंबी शिखरों एवं बड़े द्वार वाले सुंदर मंदिर हुआ करते थे। पारा और सिंधु नदियों के मध्य स्थित यह शहर एक महत्वपूर्ण स्थल के रूप में फला-फूला। इसका उल्लेख खजुराहो के कोक्कल गृहपति शिलालेख (1001 ईस्वी) में भी मिलता है। खजुराहो की शिलालेख के अनुसार, पवाया शहर की आधारशिला कृत एवं त्रेता युग में रखी गई थी। इसका श्रेय प˘ वंश के राजा को जाता है, किंतु यह तथ्य पौराणिक लगता है।

सन 1506 में दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोधी द्वारा नरवर पर कब्ज़ा किए जाने के पश्चात पवाया ज़िला मुख्यालय बन गया था तथा सफ़दर ख़ान इसके पहले नियंत्रक थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने वर्तमान किला 1512 ईस्वी में बनवाया था तथा उसका नाम सिकंदराबाद रखा, जिसका उल्लेख फारसी शिलालेखों में मिलता है। एक लंबी अवधि में विस्तारित शासन को क्षेत्र में बड़ी संख्या में मस्जिदों एवं मकबरों से निर्धारित किया जा सकता है। 

अन्य आकर्षण