मदन कामदेव मंदिर

गोवाहाटी से करीब 40 किमी दूर स्थित मदन कामदेव मंदिर आज भी अपने आप में एक रहस्य बना हुआ है। हालांकि यह मंदिर अब लगभग जीर्ण क्षीर्ण अवस्था में है, लेकिन आज तक भी इसके निर्माण संबंधी कहीं कोई विवरण नहीं मिलता। करीब 35 वर्ष पहले इस स्थान पर खुदाई के दौरान 12 अन्य मंदिरों के भी अवशेष मिले थे, जिन्हें देखने से पता चलता है कि वह इस पहाड़ी पर 9वीं या 10वीं शताब्दी में बनवाए गये होंगे। इन मंदिरों में जो मूर्तियां स्थापित थीं उनके अवशेष देखने से पता चलता है कि वह खजुराहों की मूर्तिकला शैली से मिलती जुलती हैं। 

मदन कामदेव मंदिर

उमानंद मंदिर

ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित है पिकाक द्वीप और इसी द्वीप की एक पहाड़ी है बना हुआ है उमानंद मंदिर जो भगवान शिव को समर्पित है। भोलेनाथ के अलावा इस मंदिर में कई अन्य देवी-देताओं की आराधना भी की जाती है। वैसे तो पूरे साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शनों के लिए आते हैं, लेकिन शिवरात्री के मौके पर यहां भक्तों की आपार भीड़ देखने को मिलती है। एक प्राचीन हिन्दु ग्रंथ कलिका पुराण में इस स्थान का उल्लेख मिलता है, जिसमें बताया गया है कि सृष्टि की उत्पत्ति के समय भगवान शंकर यहां ध्यान में लीन थे और कामदेव ने उनके ध्यान को भंग कर दिया था, जिससे क्रोधित होकर शंकर जी ने कामदेव को भस्म कर दिया था और यहां उन्होंने वह भस्म छिड़क दी थी। यह भी कहा जाता है कि इसी स्थान पर शिव ने देवी पार्वती को ज्ञान प्रदान किया था।  

उमानंद मंदिर

अस्वंकृंता, मणिकर्णेश्वर, दिर्गेश्वरी, रुद्रेश्वर और डौल गोविंद मंदिर

One of the greatest shrines of Lord Vishnu in Assam, the Asvankranta Temple is built on the rocky river bank of Brahmaputra. It houses the Lord's footprints in his tortoise avatar. Legend has it that once Lord Krishna and his army, camped here before he killed demon Narkasur. The temple is also linked with Lord Krishna and his wife, Rukmini, wherein it is believed the temple was constructed at the same spot where Lord Krishna’s horse was surrounded by a number of enemies back then. On the northern bank of River Brahmaputra stands the rare star-shaped Manikarneswar Temple, on a hill. It is said to be one of the oldest ones constructed in the 10-11th century AD by the Pal dynasty. Temporary tin sheets act as the roof of this temple as the original was apparently destroyed in an earthquake.

The Dirgheswari Temple is another attraction that was built by Ahom king Swargadeo Siva Singha between 1714 and 1744 CE. It is said to be a shaktipeetha (devotional shrines where severed body parts of Goddess Sati fell). Though the presiding deity is Goddess Durga, there are a number of images of gods and goddesses engraved in the rocks of the hill. Locals consider it to be the next holiest place after the Kamakhya Temple.

अस्वंकृंता, मणिकर्णेश्वर, दिर्गेश्वरी, रुद्रेश्वर और डौल गोविंद मंदिर

कामाख्या मंदिर

ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे नीलाचल पर्वत पर स्थित है कामाख्या देवी का भव्य एवं प्रसिद्ध मंदिर। यह मंदिर गोवाहाटी की सबसे बड़ी पहचान के रूप में भी प्रचलित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 8वीं सदी में किया गया था और यह शहर के प्राचीन मंदिरों में से एक है। यह मंदिर चार भागों में बंटा हुआ है। मंदिर का गर्भ ग्रह दरअसल एक गुफा है, जिसमें देवी की मूर्ति के स्थान पर एक चट्टान की पूजा की जाती है और बाकी के तीन मंडपों को कलंत, पंचरत्न और नटमंदिर के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में जो मंदिर है उसका निर्माण आहोम राजवंश द्वारा किया गया था। इस मंदिर की वास्तु कला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यहां के शिखर हैं, जिनपर बहुत बारीकी से अनेकों हिन्दु देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी गयी हैं। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवी सती के मायके में उनके पति भगवान शंकर का अनादर हुआ तो वह इसे सह नहीं पायीं और क्रोध में आकर उन्होंने यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिये थे। भगवान शिव इस घटना से इतने व्यथित हो गये कि वह देवी सती का मृत शरीर अपने कंधों पर लादकर पूरी दुनिया में घूमने लगे, जिससे पूरे ब्रह्मण्ड में हलचल मच गयी। तब महादेव के इस प्रलयकारी क्रोध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को छिन्न छिन्न कर दिया और जिन जिन स्थानों पर देवी सती के यह शरीर के टुकड़े गिरे, वह स्थल शक्तिपीठ कहलाए गये। इस स्थान देवी का गर्भ गिरा था। इसलिए यह मंदिर स्त्री शक्ति और समृद्धि का भी प्रतीक माना जाता है। सबसे पवित्र शक्तिपीठों में से एक यह शक्तिपीठ पूरे साल श्रद्धालुओं से भरा रहता है। जून के महीने में यहां प्रसिद्ध अंबूबची मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें और अधिक भारी संख्या में भक्तगण पहुंचते हैं।  

कामाख्या मंदिर