गोकर्ण का सबसे प्रसिद्ध महाबलेश्वर मंदिर, देश के सर्वाधिक सम्मानित और पवित्र शिव मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को वाराणसी स्थित विश्वनाथ शिव मंदिर के समान ही पवित्र माना जाता है। यही वजह है कि इसे अकसर ‘दक्षिण का काशी’ कह कर महिमामंडित किया जाता है। इस मंदिर में अवस्थित दो लिंगम जिनका नाम पारा-लिंगम और आत्म लिंगम है, बड़ी संख्या में देश भर से श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं। आत्म लिंगम (एक दैवी लिंगम) की ऊँचाई 6 फीट है और इसे लगभग 1,500 वर्ष पुराना माना जाता है। एक और तथ्य जो इस मंदिर के रहस्य को और गहरा बनाता है, वह यह कि यह लोगों को प्रत्येक बार 40 वर्ष गुजरने के बाद ही दिखाई देता है। इस अवसर पर एक खास अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है। सचमुच, यह इस क्षेत्र का एक विशाल आयोजन होता है, और इस अवसर पर तीर्थयात्रियों और श्रद्धालुओं के तमाम झुंड महाबलेश्वर मंदिर आकर शिव के पवित्र लिंग-स्वरूप के दर्शन करते हैं। अनुष्ठान या विधि-विधानों से संकेत मिलता है कि मंदिर में पूजन करने का सही तरीका यह है कि श्रद्धालु पहले सागर में डुबकी लगाए और फिर रेत से बने शिवलिंग की पूजा करे। इसके बाद ही उसे महाबलेश्वर मंदिर में प्रार्थना करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। महाशिवरात्रि का त्यौहार यहाँ बड़े उत्साह से मनाया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में आगंतुक शामिल होते हैं। इस मंदिर का निर्माण द्रविड़ की पेचीदा वास्तुशिल्प शैली में किया गया है और ऐसी मान्यता है कि इसे कदम्ब राजा मौर्यशर्मा (345-365 सीई) ने बनवाया था।

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