हिन्दुओं के लिए पूज्य नदियों में से एक फल्गू नदी के बारे में प्राचीन लेख बताते हैं कि इसे पहले निरंजना के नाम से जाना जाता था। फल्गू नदी के बारे में बहुत सारी मिथकीय और दंत कथाएं प्रचलित हैं। फल्गू का जल केवल वर्षा-ऋतु में ही बहता हुआ दिखाई देता है और कहा जाता है कि साल के बाकी दिनों में देवी सीता के श्राप से इसकी धारा भीतर ही भीतर बहती है। कथा है कि वनवास को जाते हुए भगवान राम और देवी सीता ने इस नदी के किनारे कुछ देर सुस्ताने का इरादा किया। वह पिंड-दान का समय था अतः भगवान राम आवश्यक सामान जुटाने के लिए चले गए और सीता माता यहां उनकी प्रतीक्षा में बैठी रहीं। इसी दौरान उनके पूर्वज प्रकट हुए और बिना और देर किए उनसे पिंड-दान करने को कहा। चूंकि उस समय देवी सीता के पास उन्हें देने के लिए कुछ भी नहीं था इसलिए उन्होंने नदी किनारे की रेत उठा कर उन्हें समर्पित की ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके। इस शंका से कि प्रभु राम उन पर विश्वास न करें, सीता मैया ने एक गाय, यज्ञ की अग्नि, एक पेड़, फल्गू नदी और एक ब्राह्मण को इस कर्म का साक्षी बनाया। पर जब प्रभु श्रीराम लौटे और इनसे पूछा तो ये सब के सब मुकर गए। सिवाय उस वृक्ष के, सभी ने सीता माता को झूठा ठहरा दिया ताकि भगवान राम फिर से उन्हें कुछ समर्पित करें। इस पर क्रुद्ध सीता माता ने उन सभी को श्राप दिया और उसी के बाद से फल्गू नदी शर्मसार होकर अपनी धारा के अंदर ही अंदर बहती आ रही है।

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