बुरी आत्माओं से स्थानीय लोगों की रक्षा करने हेतु बनवाया गया यह स्तूप- दो-द्रूल-चोर्टेन (दो-ड्रल चोर्टन) के नाम से प्रसिद्ध है। इसका निर्माण सन 1946 में त्रुल्शि रिन्पोचे द्वारा करवाया था जो तिब्बती बौद्ध धर्म की पांच शाखाओं में प्रमुख ञिङमा (न्यिन्गमा) के प्रमुखों में से एक थे। यह स्तूप तिब्बती अध्ययन संस्थान के करीब ही स्थित है। कहा जाता है कि त्रुल्शि रिन्पोचे के यहां आने से पहले इस स्थान पर दुष्ट आत्माओं का वास था। जो भी व्यक्ति यहां आता था वह यहां मौजूद पिशाच शक्तियों का शिकार हो जाता था और मृत्यु को प्राप्त हो जाता था। यहां एक सुनहरा गुंबद भी बना हुआ है, जहां से पूरे गंगटोक का खूबसूरत नजारा अलग-अलग दिशाओं से लिया जा सकता है। इस स्तूप के भीतर संपूर्ण मंडला संग्रह- कंग्युर अवशेष (पवित्र पुस्तक) और जुंग (मंत्र) सहित अन्य धार्मिक कर्म-कांड की वस्तुएं भी देखी जा सकती हैं। स्तूप की चोटी पर प्रतिष्ठापित देव को दोरजे फुरबा (धार्मिक क्रियाओं में काम आने वाला तीन ओर से नुकीला एक छोटा सा खंजर-भाला की नोक) या वज्रकील के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा यहां 108 मनि-लह्कोर (प्रार्थन-चक्र) भी स्थापित किये गये हैं, जिन्हें बौद्धित्सव का आह्वान करते हुए ओम मनि पù हम, के मंत्रोच्चार के साथ घड़ी की सुईं की दिशा में घुमाया जाता है। 

चोर्टन के बगल में ही दो अन्य छोटे-छोटे स्तूप भी स्थित हैं, जिन्हें चोर्टन लखांग और गुरु लखांग के नाम से जाना जाता है। इन पर गुरु रिन्पोचे (गुरु पùसंभव) की दो विशाल प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। यहां एक अन्य स्तूप झंग चप चोर्टन भी स्थापित है, जिसे देखने के लिए सैलानी बड़ी संख्या में आते हैं। इसका निर्माण 14वें दलाई लामा के एक शिक्षक त्रुल्शि रिन्पोचे की मृत्यु के बाद उनकी याद में बनवाया गया है। दोद्रुबचन रिन्पोचे नामक एक प्रसिद्ध लामा ने त्रिल्शु रिन्पोचे की मृत्यु के बाद इसी परिसर में अपना एक शिक्षण केन्द्र भी स्थापित किया, जहां एक बार में 700 बौद्ध भिक्षु रह कर शिक्षा ग्राहण कर सकते हैं।

अन्य आकर्षण