![जरदोजी शिल्प](/content/dam/incredible-india-v2/images/places/bhopal/zardozi-craft-bhopal-madhya-pradesha.jpg/jcr:content/renditions/cq5dam.web.512.288.jpeg 480w,
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भोपाल की यह विशिष्ट कढ़ाई कला ज़रदोज़ी पिछले 300 वर्षों से चलन में है। पहली बार फारस से भारत इस कला का शाब्दिक अर्थ सोने की कढ़ाई है।‘कलाबातुन’ के नाम से जानी जाती इसकी मूल प्रक्रिया के अंतर्गत असली सोने या चांदी में लिपटे रेशम के धागों का उपयोग किया जाता था; और फिर इस धागे को मोतियों आदि के साथ कपड़ों पर सिल दिया जाता था। मुगल युग के दौरान ज़रदोज़ी का उपयोग तम्बुओं तथा शाही परिवारों के हाथियों और घोड़ों के लिए सजावटी सामान तैयार करने में किया जाता था।हालांकि अब इस प्रक्रिया का कुछ हद तक आधुनिकीकरण कर दिया गया है, लेकिन मूल बातें अभी भी कई सदियों से समान हैं। इस शिल्प में चार प्रमुख चरण शामिल हैं:सबसे पहले, आकृति को एक अनुरेखण पत्र या ट्रेसिंग शीट पर खींचा जाता है, और इन आकृतियों के अनुरूप ही उसे छिद्रित कर दिया जाता है। पहले के समय में फूल और जानवरों की आकृतियों के रूपांकन किये जाते थे। आज उन चित्रों में पंक्तियाँ गाढ़ी रखी जाती हैं और रूपरेखा को त्वरित उत्पादन के लिए सरल रखा जाता है। इसके बाद उस ट्रेसिंग शीट को कपड़े पर रखा जाता है, और वह आकृति नीचे स्थित कपड़े पर स्थानांतरित करने के लिए उस पर मिट्टी के तेल और रॉबिन ब्ल्यू के घोल को थपथपाया जाता है। इसके बाद कपड़े को एक लकड़ी या बांस के खांचे में फँसा कर रखा जाता है और इसे अच्छी तरह फैलाया जाता है ताकि हर पंक्ति और आकृति स्पष्ट रूप से दिखाई दे। इसके बाद कारीगर उस खांचे या अड्डे के निकट बैठ कर कढ़ाई का श्रमसाध्य काम शुरू करते हैं। अंतिम चरण में ‘एरी’ नामक लकड़ी की छड़ी से जुड़ी सुई जो धागे को कपड़ों के ऊपर और नीचे से गुज़ार सकती है, की मदद से इस काम को तीव्र गति दी जाती है। काम में आवश्यक बारीकी के आधार पर, कारीगर एक कपड़े को निपटाने के लिए 1 से 10 दिन तक ले सकते हैं।अंतिम उत्पाद की कीमत की गणना निर्माण में किए गए काम और खर्च किए गए समय के आधार पर की जाती है। अब चूँकि जरदोजी की मांग कई गुना बढ़ गई है, इसलिए कारीगर जटिल डिजाइनों से सरलीकृत डिजाइनों की ओर बढ़ रहे हैं और सोने या चांदी के बजाय तांबे और सिंथेटिक तारों का उपयोग करने लगे हैं। इससे जरदोजी का सामान आम जनता के लिए सस्ती दरों पर उपलब्ध होने लगा है।भारी और विस्तृत कढ़ाई के काम में सोने के धागों, मोतियों, बीज मोतियों और तारों का उपयोग किया जाता है। काम की जटिलता के कारण जरदोजी में मोटे कपड़े जैसे कि मखमल, साटन और रेशम का उपयोग होता है और कढ़ाई के लिए टाँके, सलमा-सितारे, गिजई, बदला, कटोरी और बीज मोती इस्तेमाल किए जाते हैं। कढ़ाई के इस रूप का उपयोग आम तौर पर विशेष अवसरों को अलंकृत करने के लिए या वैभव के प्रदर्शन के लिए किया जाता है। भोपाल ज़रदोज़ी के प्राथमिक केंद्रों में से एक है, और शहर भर में अनेकों कारीगरों से लैस कार्यशालाएँ मौजूद हैं। इन कार्यशालाओं में बैग और जूते से लेकर कपड़े, शादी की पोशाक, कोट, पर्दे, कुशन कवर और बेल्ट - सब कुछ इस शिल्प द्वारा ही सजाए जाते हैं।