calendar icon Fri, April 14, 2023

भारत में बैसाखी पर्व वसंत ऋतु के आरंभ होने के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। बैसाखी पर्व जिस समय पर मनाया जाता है, अमूमन उस समय फसल कटाई का काम लगभग पूरा हो चुका होता है। किसान आनंद और उमंग से भरे होते हैं और यह समय उनके लिए समारोह मनाने का होता है। मुख्य रूप से ये समारोह पंजाब और हरियाणा में बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में बैसाखी को अलग-अलग नाम से जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में इसे पोहेला बोएशाख, असम में बोहाग बिहू, तमिलनाडु में पुथान्डु, उत्तराखंड में बिहू, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक में उगाड़ी, केरल में पूरम विशु और ओडिशा में महाविश्व संक्रांति कहते हैं।

कैसे मनाते हैं इसे?
इस पर्व का आरंभ लोगों के पवित्र नदियों में स्नान के साथ होता है। उसके बाद लोग गुरुद्वारों में जाकर माथा टेकते हैं और प्रार्थना करते हैं। मुख्य रूप से श्रद्धालुगण अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर जाते हैं, आनंदपुर साहिब स्थित गुरुद्वारे जाते हैं, जहां खालसा पंथ की उत्पत्ति हुई थी। अथवा तलवंडी साबो जाते हैं जहां पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों के धार्मिक ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब का पुनःसंकलन किया था। प्रार्थना करने के बाद लोग उत्सव मनाते हैं और नाचते व गाते हैं। प्रमुख रूप से ‘जट्टा आई बैसाखी’गीत चारों ओर गूंजते हैं। यह लोकगीत गाकर किसान एक दूसरे को बैसाखी के उत्सव में शामिल होने का निमंत्रण देते हैं।

स्वादिष्ट व्यंजनों की दावत इस पर्व का अभिन्न हिस्सा होता है। कड़ाह प्रसाद यानी सूजी या आटे से बना हलवा प्रमुख रूप से खाया जाता है। सभी लोग गुरु का लंगर खाने के लिए गुरुद्वारे की सामूहिक रसोई में एकत्रित होते हैं। भोजन करने के बाद वे सब नगर कीर्तन के लिए निकल पड़ते हैं। वे शहरों की गली-गली में घूमकर भजन यानी भक्ति-भाव से भरपूर गीत गाते हैं।