असम राज्य में मनाए जाने वाला बोहाग बिहू एक कृषि प्रधान पर्व है। यह पर्व खेतों में बीजों की बुवाई के समय के आरंभ होने का प्रतीक है। बिहू पर्व हर वर्ष तीन बार मनाया जाता है। बोहाग बिहू के अलावा काटी बिहू तथा माघ बिहू भी मनाया जाता है। ये पर्व अमूमन अक्टूबर और जनवरी माह में मनाते हैं। काटी बिहू फसलों की कटाई के प्रतीक के रूप में तथा माघ बिहू फसलों का सत्र पूरा होने के अवसर पर मनाया जाता है। इन तीनों बिहू पर्वों में बोहाग बिहू का बहुत अधिक महत्व होता है। इस पर्व के साथ ही असम के लोगों का नववर्ष भी आरंभ होता है। यह पर्व रोंगाली के नाम से भी प्रचलित है। रोंग का अर्थ होता है आनंद। यह समय सभी जन के लिए आनंदित और आशावादी होने का ही होता है।
कैसे मनाते हैं यह पर्व?
बोहाग बिहू सात दिनों के लिए मनाया जाता है। पहला दिन गारू बिहू के रूप में मनाते हैं, इस अवसर पर लोग अपने इष्ट देव से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें अच्छी फसल प्राप्त हो और उनकी फसलें किसी भी प्राकृतिक आपदा से बची रहें। उन सभी का भंडार अनाज से हमेशा भरा रहे। किसानों के लिए उनके पशु विशेष महत्व रखते हैं। इस दिन किसान अपने पशुओं को नदियों पर ले जाकर उन्हें नहलाते हैं। दूसरे दिन यानी मानहू बिहू के अवसर पर लोग अपने शरीर पर हल्दी का लेप लगाते हैं, उसके बाद वे स्नान करते हैं। यह दिन दावत का आनंद लेने का होता है, इसलिए लोग लारू अर्थात लड्डू तथा भात से बनाए गए पीठा खाते हैं। इस प्रकार के समारोह राज्य के हर हिस्से में मनाए जाते हैं। इस मौके पर लोग एक दूसरे के घर पर जाते हैं और उन्हें गमोसा, अर्थात लाल व सफेद रंग का हाथ से बना असम का पारंपरिक सूती गमछा भेंट करते हैं। इसके अगले दिन गुक्सई बिहू मनाया जाता है। इसका मतलब होता है घर-घर में इष्ट देव की पूजा-अर्चना करना। चौथा दिन तातोर बिहू कहलाता है अर्थात हथकरघे का बिहू। पांचवें दिन नांगोलोर बिहू मनाते हैं। इस दिन किसान अपने औज़ारों की पूजा करते हैं। छठे दिन मनाए जाने वाला आयोजन घारोसिया जिबर बिहू कहलाता है, जो घरेलू पालतू पशुओं के लिए होता है। अंतिम दिन छेरा बिहू मनाया जाता है।
इन सभी दिनों में लोग आनंदित होने के लिए उत्साहपूर्वक नृत्य करते एवं गीत गाते हैं। लोकगीतों जिन्हें बिहू गीत कहा जाता है, उनकी गूंज चारों ओर सुनाई देती है। इन गीतों में प्रेम एवं रोमांस के भाव अभिव्यक्त किए जाते हैं।