उदयपुर से लगभग तीन घंटे की दूरी पर राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू है, जो अरावली रेंज में है और समुद्र तल से 1,722 मीटर ऊपर है। झील, झरनों और अनोखे जैन मंदिरों का आनंद लेने के लिए यहां उदयपुर से आसानी से पहुंचा जा सकता है। इसके बीचोबीच शांत और निर्मल निकी झील मौजूद है। कहा जाता है कि इस झील को देवताओं ने नख यानी नाखूनों से खोदा था, इसीलिये इसका यह नाम पड़ा। यह हरी पहाड़ियों, अच्छे से बनाए गए पार्कों और टॉड रॉक, जो पानी में कूदते एक टॉड जैसा दिखता है, सहित अन्य चट्टानों से घिरी हुई है। 14वीं शताब्दी का रघुनाथ मंदिर झील के दक्षिणी किनारे के पास है। झील में बोटिंग करना लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाता है। पहाड़ी पर सनसेट पॉइंट भी काफी लोकप्रिय है, जहां से डूबते सूरज के शानदार दृश्य का आनंद लिया जा सकता है।

शहर 289 वर्ग किलोमीटर के माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य (वाइल्डलाइफ सेन्कचुरी) से घिरा हुआ है, जो ज्यादातर पहाड़ों पर फैला हुआ है। यहां दुनिया के सबसे बेहतरीन जैन मंदिरों में से एक देलवाड़ा मंदिर भी हैं। कई दशकों में बने, इन संगमरमर के मंदिरों का निर्माण शहर की स्थापना से कई शताब्दियों पहले किया गया था। मंदिरों में से दो में इतनी बारीकी से नक्काशी की गई है कि ऐसा लगता है मानो जैसे इन्हें दिव्य हाथों द्वारा बनाए गया हों। इनमें सबसे पहला और पुराना है विमल वसाही, जिस पर काम वर्ष 1031 में शुरू हुआ और पूरा होने में 14 साल से अधिक का समय लगा। यह सबसे पहले तीर्थंकर (जैन शिक्षक), आदिनाथ को समर्पित है। लूना वसही मंदिर 22 वें तीर्थंकर नेमिनाथ को समर्पित है और इसे वर्ष 1230 में बनाया गया था और कहा जाता है कि इसे पूरा होने में 15 साल लग गए थे। इस मंदिर में, संगमरमर की इतनी बारीक नक्काशी की गई है कि इसके कई हिस्सों में ऐसा लगता है कि मानो पत्थर रोशनी के लिए पारदर्शी हो गया हो।

माउंट आबू में गुरु शिखर चोटी भी है जो पूरी अरावली रेंज की सबसे ऊंची चोटी है। यहां दत्तात्रेय का एक मंदिर है, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश की दिव्य त्रिमूर्ति द्वारा ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी अनसुया को दिया गया पुत्र माना जाता है। माउंट आबू न केवल अपने सुंदर नजा़रों बल्कि धार्मिक मूल्यों और वास्तुकला के लिए भी महत्वपूर्ण है।

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