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हल्दीघाटी एक पहाड़ी रास्ता है, जो उदयपुर से लगभग एक घंटे की दूरी पर है। ये कई युद्धों के लिए प्रसिद्ध है, जो यहां लड़े गए थे। इनमें सबसे प्रसिद्ध है सन् 1576 की लड़ाई, जो मेवाड़ के राणा प्रताप सिंह और मुगल सम्राट अकबर की सेना के बीच हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि इस लड़ाई में इतने सैनिक मारे गए थे कि यहां की पीले रंग की मिट्टी (जिस जगह से इसका नाम निकलता है) लाल हो गई थी। यह वह जगह है जहां महाराणा प्रताप के प्रिय और बहादुर घोड़े चेतक ने राजा को बचाने की कोशिश करते हुए अपनी जान गंवा दी थी। यहां चेतक को समर्पित, शुद्ध सफेद संगमरमर से बना एक सैनिक स्मारक भी है। उदयपुर से लगभग 40 किमी दूर, आज हल्दीघाटी एक ऐसी जगह है, जो कहानियों में पाये जाने वाले स्थल सी दिखाई पड़ती है। पास ही बादशाही बाग है, जो गुलकंद (गुलाब की पंखुड़ियों से बनाया जाता है) के लिए मशहूर है।
उदयपुर के बाहर आहड़ नाम से एक कब्रिस्तान है जो मेवाड़ के राजाओं का श्मशान घाट है। 400 साल पहले बनाए गए आहड़ में, मेवाड़ के राजाओं और रानियों के 372 स्मृति स्मारक हैं। जो इसे एक प्रसिद्ध आर्कियोलॉजिकल साइट का दर्जा प्रदान करते हैं। यहां उन्नीस महाराणाओं का अंतिम संस्कार किया गया था, और सबसे खास स्मारक महाराणा संग्राम सिंह (1710 से 34) का है। ये स्मारक संगमरमर से बने हैं, जिनमें नक्काशी भी की गई है। संग्राम सिंह का स्मारक एक गुम्बद के आकार में बना है, जिसमें 56 स्तंभ है। इसके पास एक छोटा सा प्राचीन वस्तुओं का संग्रहालय (म्यूज़ीअम) है। इस संग्रहालय में 10 वीं शताब्दी की प्राचीन वस्तुएं हैं। उनमें से कुछ में मिट्टी के बर्तन, लोहे की वस्तुएं आदि शामिल हैं। और यहां 10वीं शताब्दी की ही भगवान बुद्ध की धातु की मूर्ति भी है। इसके साथ-साथ ईसा पूर्व पहली शताब्दी के अनाज के बर्तन, त्वचा को रगड़ने वाले ब्रश, गेंद और मुहरें भी मिलती हैं।
पिछोला झील के गंगोरी घाट पर शानदार बागोर की हवेली मौजूद है। 18 वीं शताब्दी में मेवाड़ राज्य के तत्कालीन प्रधानमंत्री अमर चंद बडवा द्वारा निर्मित, बागोर की हवेली भारत के स्वतंत्र होने तक एक निजी संपत्ति थी। आज, आलीशान वास्तुकला के साथ यह हवेली, एक संग्रहालय है। एक विशाल आंगन, बालकनियां, झरोखे, मेहराब, कपोल और एक फव्वारे के साथ बागोर की हवेली मेवाड़ की समृद्ध विरासत का परिचायक है। लगभग 138 कमरों वाली इस हवेली के अंदरूनी हिस्सों को आकर्षक ग्लासवर्क और म्युरल्स से सजाया गया है, जिसमें शाही महिलाओं के कक्ष भी शामिल हैं, जो जटिल रंगीले ग्लास की खिड़कियों के लिए प्रसिद्ध हैं।
हवेली के विशाल दरवाज़ों से अंदर आने पर यह वास्तुकला के किसी चमत्कार के रूप में दिखाई देती है। इसमें एक आकर्षक आंगन है, जिसके केंद्र में डबल-लेयर्ड कमल के आकार का फव्वारा है। जैसे ही आप अंदर जाते हैं, दायीं ओर कमरों की एक श्रंखला है, जहां से पिछोला झील के शानदार दृश्य देखने को मिलते हैं। हवेली में तीन चौक हैं: कुआं चौक, नीम चौक और तुलसी चौक। तुलसी चौक परिवार की महिलाओं के लिए आरक्षित था। कांच महल (आईनों से बना मार्ग) और दर्री खाना परिवार के पुरुषों द्वारा उपयोग किए जाने वाले क्षेत्र थे। ईन सभी में दीवान-ए-खास सबसे बड़ा कक्ष था।
पिछोला झील के बीचोबीच स्थित, लेक पैलेस झील की नीली सतह पर तैरता सफेद रंग के किसी सपने जैसा लगता है। और हर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय, महल झिलमिलाते सुनहरे पानी में पिघलता हुआ-सा प्रतीत होता है।
इसे वर्ष 1743 और 1746 के बीच चार एकड़ के जग निवास द्वीप पर महाराणा जगत सिंह द्वितीय की देखरेख में उनके गर्मियों के महल के रूप में बनाया गया था। इस सफेद संगमरमर के महल को मूल रूप से जग निवास के रूप में जाना जाता था। बाद में जगत सिंह के वंशजों ने गर्मियों के रिसॉर्ट के रूप में इसका इस्तेमाल किया। आज, इसमें एक आलीशान पांच सितारा होटल है।
'स्वर्ग की वाटिका' के नाम से प्रसिद्ध इस खूबसूरत महल के बारे में कहा जाता है कि इसने ताजमहल के डिज़ाइन को प्रेरित किया था। जगनिवास से लगभग 800 मीटर दक्षिण में जग मंदिर द्वीप पर बने इस तीन मंजिला महल को महाराणा कर्ण सिंह द्वितीय ने वर्ष 1620 में बनवाया था और बाद में उनके बेटे ने इसे पूरा किया। पीले सैंडस्टोन और संगमरमर से बने इस महल के बारे में कहा जाता है कि राजा ने इसे मुगल सम्राट शाहजहां के लिए सम्राट बनने से पहले छिपने की जगह के रूप में बनाया था। बताया जाता है कि शाहजहां, जो उस समय राजकुमार खुर्रम के नाम से जाने जाते थे, अपनी पत्नी और बेटों के साथ यहां रहते थे। शायद इसी कारण गुल महल में, वो हिस्सा जिसमें राजकुमार रहते थे, आधे चांद और उस जैसे इस्लामी वास्तुकला के कई अन्य निशान हैं। यहां एक मस्जिद का भी निर्माण किया गया था। गुल महल में काली और सफेद टाइलों से बना एक अनोखा आंगन भी है। लोककथाओं में कहा गया है कि मुगल राजकुमार महल की वास्तुकला, खास तौर पर इसकी पियत्रा डोरा (पत्थर में जढ़ाई का काम) से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने आगरा में ताजमहल में भी इसका इस्तेमाल करवाया था।
यहां के अन्य आकर्षण हैं- विशालकाय संगमरमर के हाथी, बड़ा पत्थरों का महल, कुंवर पडा का महल, जनाना महल और खूबसूरत फूलों के बाग। इसमें एक संग्रहालय भी है, जो इस द्वीप और महल के इतिहास की झलक देता है। दिलचस्प बात ये है कि ज्यादातर स्थानीय लोग इसे वर्ष 1983 की जेम्स बॉन्ड फिल्म 'ऑक्टोपुसी' का जिक्र करते हुए 'ऑक्टोपसी के घर' के नाम से बुलाते हैं, जिसे उदयपुर के कई महलों में शूट किया गया था।