श्री जगन्नाथ मंदिर भारत के सबसे प्रतिष्ठित और पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। इसके मुख्य देवता भगवान जगन्नाथ हैं, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।

इस राजसी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसे राजा अनंगभीमदेव ने बनवाया, जिन्हें गंगा वंश के अनंगभीम III के नाम से भी जाना जाता है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि मंदिर का निर्माण इस राजवंश के संस्थापक चोदगंगदेव के शासनकाल के दौरान 12 वीं शताब्दी में शुरू हुआ था। विशाल उभरे हुए मंच पर निर्मित यह शानदार मंदिर, अपने सभी पड़ोसी इमारतों से ऊंचा है, और यह पुरी के क्षितिज रेखा पर अपना प्रभुत्व बनाये हुए है। इसका 65 मीटर ऊंचा शिखर, शहर के बाहरी इलाके से भी दिखाई देता है। मंदिर का परिसर दो संकेंद्रित दीवारों, कुरुमा भेड़ा (भीतरी दीवार) और मेघनाद पचीरा (दीवार) से घिरा है। मंदिर का मुख्य प्रवेश सिंह द्वार या लायन गेट के माध्यम से है, जिसकी सुरक्षा पत्थर के बने दो सिंह करते हैं जो छलांग लगाने के पूर्व की मुद्रा में बैठे हैं। दरवाजे के बगल में भित्ती स्तम्भ पर एक जोड़ी पहरेदारों की प्रतिमाएं हैं। तीन अन्य दिशाओं से भी तीन द्वार हैं जिन्हें हाथी द्वार, अश्व द्वार और शेर द्वार (जिसे खंजा गेट भी कहते हैं) के नाम से जाना जाता है। मंदिर परिसर के अंदर, 6,000 सेवक और रसोइयें रहते हैं जो प्रतिदिन लगभग 10,000 लोगों के भोजन का प्रबंद्ध करते हैं। हर साल, बड़े उत्साह के साथ यह मंदिर, रथ यात्रा त्योहार मनाता है। यह देश भर का सबसे भव्य आध्यात्मिक समारोहों में से एक है जिसमें लोग व्यापक रूप से सम्मिलित होकर भाग लेते हैं।

मंदिर की चार संरचनाएं हैं: विमान या बड़ा देउला (गर्भगृह), जगमोहन या मुखशाला (पोर्च), नटमंदिर (दर्शक सभागृह) और भोगमंडप (भोग, देवताओं को दिया जाने वाला भोजन है)। हालांकि भगवान जगन्नाथ के रहस्यवाद के समक्ष, मंदिर संरचना का भव्य वास्तुशिल्प कम महत्व का दिख सकता है, लेकिन इसकी कई अनूठी विशेषताएं हैं। कहा जाता है कि मुख्य मंदिर का निर्माण इस तरह से किया गया है कि दिन के किसी भी समय पर, इसकी कोई भी छाया जमीन पर नहीं पड़ती है। इसके कई अन्य आकर्षण बिंदुएं हैं, जैसे मंदिर के शिखर पर रक्खा नीलचक्र, या नीला पहिया। भक्तों का मानना है कि अष्टधातु, यानि आठ धातुओं से निर्मित नीलचक्र के दर्शन करना, स्वयं भगवान के दर्शन करने के समान है। नीलचक्र के ऊपर पतितपाबन ध्वज है जो प्रतेक दिन सूर्यास्त के समय बदला जाता है। श्रद्धालुओं के लिए, फहराते ध्वज को देखना ही एक दिव्य दृश्य है। भक्तगण, महाप्रसाद यानि भगवान के भोजन को बड़े सम्मान के साथ ग्रहण करते हैं। चावल,सब्जियों और अनाज को मिट्टी के बर्तनों में, लकड़ी और लकड़ी-कोयले की आग पर पकाया जाता है। सिंह द्वार के सामने, काले रंग के क्लोराइट का एक 33 फुट ऊंचा अखंड स्तंभ, जिसे अरुणा स्तम्भ या सूर्य स्तंभ कहते हैं, भी पूजनीय है। स्तंभ के उपर गरुड़, वही पौराणिक पक्षी जो भगवान विष्णु का वाहन है, स्थित है।

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