आरती करना हिंदू धार्मिक समारोहों में शुभ माना जाता है। इसके लिए कपास की बत्तियों को घी में डुबोकर प्रज्जवलित किया जाता है और इससे श्री बांकेबिहारी मंदिर में प्रतिष्ठित देवताओं की आरती उतारी जाती है। किंवदंती है कि मंदिर में बांकेबिहारी जी की मूर्ति स्वामी हरिदास को दैवीय युगल श्यामा-श्याम द्वारा प्रदान किया गया था। इस जोड़ी के प्रति अपनी श्रद्धा के प्रतिफल के रूप में प्रभु ने उन्हें स्वयं दर्शन दिए। अंर्तध्यान होने से पहले बांकेबिहारी जी ने उस परिसर में एक काली मूर्ति छोड़ दी। ऐसा माना जाता है कि यह मूर्ति इतनी प्रभावशाली है कि यदि आप इसे लंबे समय तक एकटक देखते रहें, तो आप अपनी आत्म चेतना खो सकते हैं और स्वयं ही बांकेबिहारी जी में लीन हो सकते हैं।
इस मंदिर में कृष्ण जन्मांष्टमी, गुरु पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा और कई अन्य त्योहारों को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और इन दिनों भव्य आरती का आयोजन किया जाता है। भले ही कोई व्यक्ति श्री बांकेबिहारी जी का भक्त हो या नहीं, परंतु यदि वह पहली बार वहां जाता है तो श्री बांकेबिहारी जी के दर्शन करने अवश्य जाता है।

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