ब्रह्मोत्सव के नाम से भी जाना जाने वाला यह दस दिवसीय उत्सव, भगवान कृष्ण के ब्रज में आगमन के उपलक्ष्य में, मार्च-अप्रैल के महीने में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह यात्रा भगवान जगन्नाथ के अवतार सूर्यनारायण (सूर्य भगवान) को श्रद्धांजलि देने के लिये निकाली जाती है। यह माना जाता है कि इस समय, भगवान जगन्नाथ, अपनी बहन देवी सुभद्रा और भाई भगवान बलराम अपने स्वर्गीय निवास से, अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए, नीचे उतरते हैं। रथयात्रा मथुरा की निवासियों के भगवान की भक्ति का देखने का सबसे अच्छा तरीका है, और इसी दौरान स्वादिष्ट से स्वादिष्ट व्यंजनों को चखने को मौका भी मिलता है। इस यात्रा के दौरान, भक्तों द्वारा रथ को, मंदिरों से आस-पास से खींचते कर समीप के बागों तक ले जाते हुए, देखा जा सकता है। इन रथों में भगवान विष्णु के साथ-साथ उनके पौराणिक वाहन गरुड़, भगवान हनुमान, भगवान सूर्य, भगवान चंद्र (चंद्रमा देव), एक हाथी और एक शेर, की मूर्तियां होती हैं, जिन्हें खूबसूरती से सजाया रहता है। इनके आगमन से पहले, भगवान कृष्ण के सुदर्शन चक्र (दिव्य अस्त्र) का आगमन होता है, जिसे भागवत भवन से लाया जाता है। यह जुलूस मथुरा में भगवान कृष्ण के जन्मस्थान से शुरू होता है, जबकि वृंदावन में, यह एक ही समय में तीन अलग-अलग मंदिरों से शुरू होता है। यह यात्रा डीग गेट, मंडी रामदास, चौक बाजार, स्वामी घाट, चट्टा बाजार, होली गेट, कोतवाली गेट, और भरतपुर गेट से होते हुए निकलती है, और अंत में कृष्ण जन्मस्थान पर वापस लौट आती है। यात्रा के दौरान मूर्तियों पर फूलों की वर्षा की जाती है, भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाता है, और उसके बाद भव्य भोज का आयोजन किया जाता है।

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