जयपुर के महाराजा मानसिंह द्वारा वर्ष 1590 में निर्मित प्रसिद्ध मंदिरों में से एक गोविंद देव मंदिर लाल बलुआ पत्थर से निर्मित उत्कृष्ट वास्तु कला का नमूना है। यह मंदिर लगभग 5 वर्ष में बनकर तैयार हुआ है। यह मंदिर संगमरमर से बना हुआ है, इसमें एक गर्भ गृह है, जिसे सोने-चांदी से सजाया गया है। इस मंदिर के सेंट्रल टावर, वाल्ट, मेहराब और गुंबदनुमा छत सभी पर यूरोपीय वास्तुकला की छाप मिलती है। माना जाता है कि गोविंद देव मंदिर में स्थापित राधा रानी की मूर्ति पहले मथुरा में अन्यत्र स्थापित की गई थी। एक किंवदंती के अनुसार श्री रूप गोस्वामी ने इस मंदिर के निर्माण का स्वप्न देखा था। वे एक भक्त कवि और उपदेशक थे। ऐसा कहा जाता है कि एक दिन वे एक वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे और भगवान कृष्ण को मंत्रों का जाप कर रहे थे। उसी समय एक चरवाहे ने उन्हें एक ऐसी गाय के बारे में बताया, जो प्रतिदिन एक पहाड़ी पर जाती है और एक छेद के ऊपर दूध टपकाती है। उस चरवाहे ने अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उस गाय का पीछा किया, जो निश्चित स्थान पर दूध टपकाती थी। उसने उस स्थान की खुदाई शुरू की। वहां उसे त्रिभंगी रूप में भगवान कृष्ण की मूर्ति प्राप्त हुई उसने वहां पर भगवान कृष्ण को समर्पित एक मंदिर बनाने का निर्णय लिया। लेकिन उसकी स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह मंदिर बना पाता। इसलिए उसने महाराजा मानसिंह से अपनी आकांक्षा के अनुसार मंदिर बनाने का अनुरोध किया। आज वह वह मंदिर उस स्थान पर स्थित है, जहां भगवान की मूर्ति मिली थी और जहां पर रूप गोस्वामी ने ध्यान लगाया था।

अन्य आकर्षण