कोई पहाड़ी पठार हो और वह पूरी तरह फूलों से लदा हुआ हो, तो उसे देखना ख़ुद में कैसा अद्भुत अनुभव होगा, इसका अनुमान तो आप कल्पना मात्र से ही कर सकते हैं। ऐसी ही एक जादुई जगह है जिसका नाम है कास। लाखों फूलों से लदे हुए के पठार के नाम से मशहूर इस स्थान को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया जा चुका है, और यहाँ फूलों की दुर्लभ स्थानिक प्रजातियाँ मौजूद हैं। बारिश के मौसम के दौरान यहाँ रंगों का जैसे एक उत्सव सा मनता हुआ दिखाई देता है। जुलाई, अगस्त और सितंबर के महीनों के दौरान यहाँ का पूरा परिदृश्य ही एक कुशल कलाकार के कैनवास में तब्दील हो जाता है। आप यह सुन कर ही समझ सकते हैं यह जगह कितनी चमत्कारिक और सुन्दर होगी, कि हर कुछ समय बाद यहाँ फूलों की पुरानी प्रजातियाँ मुरझा जाती हैं, विभिन्न नई प्रजातियां खिल जाती हैं और ऐसा होने से हर 15-20 दिनों में इस पूरे पठार के रंग बिलकुल बदल जाते हैं! यहाँ फूलों और पौधों की 850 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं, और वनस्पतियों की इतनी व्यापक विविधता के कारण यह जगह वनस्पति अध्ययन में उच्च स्तरीय शोध करने के लिए एक महत्वपूर्ण जगह बन चुकी है। यहाँ का एक अन्य आकर्षण सुंदर कास झील भी है, जहाँ से उर्मोडी नदी का का उद्गम होता है। एकदम शांतिपूर्ण और सुरम्य वातावरण के बीच स्थित यह झील यहाँ का एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल है। इसी के बिलकुल नज़दीक एक ख़ूबसूरत झरना भी स्थित है जो बड़ी संख्या में पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना रहता है। 

लेकिन कास को जो चीज़ सबसे ज़्यादा ख़ास बनाती है, वह है इसके मैदानों के ज़र्रे-ज़र्रे को ढंकते खिले हुए फूल, जो एक बेहद सुन्दर कालीन का सा दृश्य रचते हैं। सुनहरे रंग के स्मिथिया जिन्हें मिक्की माउस के फूल भी कहा जाता है, सोनकी, गुलाबी रंग के लैवेंडर, बैंगनी रंग के बेलसम, सफ़ेद रंग के जेंड एरीकोकुलन और अपनी पंखुड़ियों पर सोने की धूल सी लिए पीच मुरदानिया, यह सब फूलों की वह लाजवाब प्रजातियाँ हैं जिनसे ढंका हुआ यह पूरा वनस्पतिय क्षेत्र आपको अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के मोहपाश में जकड़ लेता है। यहाँ आप कुछ अन्य दुर्लभ वनस्पतियाँ भी देख सकते हैं जिनमें प्रमुख हैं ‘सीता के आँसू’ नाम से जाना जाता सुन्दर यूट्रीकुलेरिया पौधा जिसमें छोटे-छोटे कीड़ों को फँसाने के लिए जड़ों के चारों ओर छोटे-छोटे पात्र से बने होते हैं, हरी-पीली हेबेनेरिया डिजिटा जैसे ऑर्किड्स, और एक लालटेन की तरह दिखता सेरोपेजिया जिसे कंदील खार्चुड़ी के नाम से भी जाना जाता है। 

यहाँ के फूलों में सर्वाधिक मुख्य आकर्षण प्लियोकोलस रिचेई है, जिसे स्थानीय तौर पर टोपली कर्वी या उल्टी टोकरी के नाम से जाना जाता है। आप हैरान हो जाएँगे यह जान कर कि यह फूल आठ साल में सिर्फ़ एक बार खिलता और फिर मर जाता है। इसके खिले हुए फूल बिलकुल बैंगनी फूलों की टोकरी की तरह सुन्दर दिखते हैं! और इन फूलों के साथ यहाँ मधुमक्खियों, तितलियों, कीड़े और मेंढक जैसे और भी अन्य प्रकार के बहुत से जीव-जंतु हैं जो आपका दिल लुभाए बिना नहीं मानेंगे। 

पिछले 20 करोड़ वर्षों में दक्कन के पठार में 29 ज्वालामुखी लावा बह चुके हैं, और बहुत पहले कास इसी पठार का ही एक हिस्सा हुआ करता था। जैसे-जैसे लावा की नई परतें आती गईं, वह पुराने लावा के ऊपर फैलती रहीं और आज यहाँ बहुत सी सुंदर घाटियाँ और दर्रे हैं जिन्हें नदियों की धाराओं ने लावा की उन परतों को मिटाकर ऐसा अद्भुत आकार दिया। जब भी दक्षिण-पश्चिम मानसून का आगमन होता है, तो इस क्षेत्र में तीन महीनों के अंतराल में लगभग 2,500 मिमी बारिश होती है।

अन्य आकर्षण