लखनऊ शहर ख़ूबसूरत नक्काशीदार कांच की बोतलों में मिलनी वाली शानदार इत्र के लिए जाना जाता है। लखनऊ के इत्र विभिन्न सुगंधित जड़ी.बूटियोंए मसालोंए चंदन के तेलए कस्तूरीए फूलों के रस और पत्तियों से बनाई जाती हैंए जिसकी भीनी.भीनी खुशबू काफी टिकाऊ होती है। अत्तारए फ़ारसी शब्द श्अत्रश् से लिया गया है जिसका अर्थ है सुगंध या खुशबू। लखनऊ में इत्र या अतर का उपयोग 19वीं सदी से हो रहा है। नवाबों के ज़माने मेंए पकवानों का स्वाद और सुगंध बढ़ाने के लिए उनके भोजन में इत्र भी मिलाया जाता था। ऐसा कहा जाता है कि मुग़ल महारानी नूरजहां गुलाब जल से सुगंधित पानी से स्नान किया करती थींए इस प्रकार लोगों को फूल से सुगंधित तेल निकालने का प्रोत्साहन भी मिला।किंवदंती यह है कि इत्र प्राप्त करने का विचार तपस्वियों से प्राप्त हुआ थाए जो हवन करते समय पौधों की जड़ों और उसकी शाखाओं को जलाते थे। उस दौरान उस स्थान से मीठी.मीठी खुशबू आती थीए जिसने आसपास के ग्रामीणों को सही सुगंध पहचानने और फूलों का सटीक प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया। जब वे अतर के वैज्ञानिक निर्माण के बारे जान गएए तो ग्रामीणों ने इन सुगंधों को नवाबों को पेश करना शुरू कर दियाए और मेहमानों के आने से पहले महल के हॉल और रास्तों पर उसका छिड़काव किया जाता था। चूंकि अतर में बहुत से चिकित्सीय गुण भी होते हैंए इसीलिए सार्वजनिक स्थानों पर जब इसका छिड़काव किया जाता हैए तो आगंतुकों के मन को इसकी सुगंध से शान्ति भी मिलती है। कृत्रिम ;मसनूईद्ध इतर को छोड़कर सभी इत्रों को सीधे त्वचा पर लगाया जाता हैए जो कि बहुत दिनों तक महकता रहता है। वे कार्बनिक होते हैंए और इसलिए कृत्रिम सेंट की तुलना में अधिक टिकाऊ होते हैं। पारंपरिक और प्रसिद्ध सुगंधों में जिन्हें शुमार किया जाता है वो हैंए खसए केराए चमेलीए ज़ाफ़रानए अगर आदि। इन सभी इत्रों को आप अमीनाबाद या चौक के बाज़ार से ख़रीद सकते हैं।

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