तुर्की में कॉन्स्टैंटिनोपल में एक प्राचीन द्वार की डिज़ाइन से मिलता.जुलता रूमी दरवाज़ा 1780 में एक अवध नवाब नवाज़ए असफ.उद्.दौला द्वारा बनवाया गया था। इसे तुर्की गेट के रूप में भी जाना जाता हैए इसकी सजावटी इमारत के सबसे ऊपरी हिस्से में एक आठ.मुखी छाते जैसी संरचना बनी है। अब लखनऊ के एक प्रतीक के बतौर जाना जाने वालाए रूमी दरवाज़ा पहले पुराने शहर के प्रवेश द्वार के रूप में इस्तेमाल किया जाता थाए और इसकी ऊंचाई 60 फीट है। इसे वर्ष 1784 के अकाल के दौरान रोज़गार पैदा करने के लिए बनवाया गया था। द्वार की स्थापत्य शैली एकदम नवाबी है। इसमें प्रयुक्त सामग्री इसे उस मुग़ल शैली से अलग करती हैए जिसमें बलुआ लाल पत्थर पसंद किया जाता थाए जबकि यहां चूने में लिपीं ईंटें इस्तेमाल होती थींए जिनमें ज्‍़यादा मुखर मूर्तिकला मुमकिन हैए जो पत्थर पर नामुमकिन होती। यह दरवाज़ाए अपनी बारीक फूल.नक्काशी पर इठलाता है। पुराने समय मेंए इसके प्रवेश द्वार के माथे पर एक विशाल लालटेन होती थीए जो रात में जलायी जाती थीए और मेहराब से पानी के फव्वारे निकला करते थे। शहर में पहली बार आने वाले पर्यटकों के लिएए रूमी दरवाज़ा देखने की चीज़ है। लगभग सभी संचालित भ्रमण यात्राओं व हेरिटेज गश्तों में इसे ज़रूर शामिल किया जाता है।

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