![चिकनकारी](/content/dam/incredible-india-v2/images/places/lucknow/lucknow-crafts-30.jpg/jcr:content/renditions/cq5dam.web.512.288.jpeg 480w,
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शिफॉनए मलमलए ऑर्गेन्ज़ाए ऑरगेंडी और रेशम जैसे कपड़ों पर नाजुक हाथों से की जाने वाली कढ़ाई की तकनीक लखनऊ के सबसे महत्वपूर्ण शिल्पों में से एक है। श्चिकनश् शब्द का अर्थ है कढ़ाईए और इस कला में कढ़ाई की 36 अलग.अलग तकनीकें हैं। शुरुआत मेंए केवल सफ़ेद धागे या मलमल के कपड़े का उपयोग किया गया था। सिलाई कपड़े के पीछे की जाती हैए जबकि सामने की तरफ की डिज़ाइन को छोटे.छोटे टांके से बनाया जाता है। तीन प्रकार के टांके ख़ास होते हैं.सपाटए उभरा हुआ और जालीदार। फ़ारसी प्रभाव के कारणए इस कला में फूलों का एक ख़ास स्थान है। ठेठ चिकनकारी में लता और बेल की आकृतियां होती हैं। हालांकिए इन फूलों के प्रकार और शैलियां फैशन के साथ बदलती रहती हैं। देश भर में आजए चिकनकारी के सैकड़ों खुदरा विक्रेता हैं। लखनऊ मेंए बाज़ार के दोनों तरफ़ चिकन की कढ़ाई वाले परिधान बेचने वालों की कई दुकानें हैंए जिसमें आपको चिकन की कढ़ाई के कई रूप देखने को मिलेंगे। आप यहां से चिकनकारी में सजी शर्टए कुर्तेए चादरए मेज़पोशए तकिये का गिलाफ़ और कई अन्य सामान ख़रीद सकते हैं। इस तकनीक को 17वीं शताब्दी में मुगल महारानी नूरजहां द्वारा लागू किया गया था। एक अन्य किंवदंती में किसी प्यासे यात्री का उल्लेख मिलता हैए जो लखनऊ के पास किसी गांव में रुका थाए और उसने वहां किसी ग्रामीण से पीने के लिए पानी मांगा था। ग्रामीणों के आतिथ्य और उदारता से प्रभावित होकरए उसनेए उन्हें चिकनकारी का कौशल सिखा दिया।