लखनऊ के दो मुख्य रेलवे स्टेशनों में से एक चारबाग रेलवे स्टेशनए वास्तुशिल्प का एक चमत्कार हैए जिसमें ब्रिटिश प्रभावों के साथ मिश्रित राजस्थानी और मुगल शैलियों का बेहतरीन समावेश है। स्टेशन ऊपर से शतरंज की बिसात की तरह दिखाई देता हैए जिसमें बुर्ज और गुंबद शतरंज के बिसात से मिलते.जुलते हैं। हालांकि सामने सेए यह एक राजपूती महल जैसा दिखता है। इस तरह के निर्माण की विशेषता यह है कि इस भवन के अंदर एक बड़ा जलाशय खूबसूरती से छिपा हुआ है। चारबाग को वर्ष 1914 में एक अंग्रेज जेएच हॉर्नमैन द्वारा डिजाइन किया गया था। यह स्टेशन ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि महात्मा गांधी पहली बार पंडित जवाहरलाल नेहरू से यहीं मिले थे। वर्ष 1916 में कांग्रेस विधायिका का उद्घाटन सत्र भी चारबाग रेलवे स्टेशन पर ही हुआ था। स्टेशन के ठीक बाहर दर्शनीय हनुमान मंदिर है। संत शाह सैयद क़यामुद्दीन का अंतिम विश्राम स्थल खम्मन पीर बाबा की मजार भी चारबाग के करीब स्थित है। यह 900 साल से भी अधिक पुराना है। इस परिसर में एक भव्य मस्जिद भी है।

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