यह मंदिर उस जगह के रूप में प्रसिद्ध है, जहां पर भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया था। मंदिर के समक्ष अखंड ज्योत जलती रहती है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह उस उल्लेखनीय विवाह की साक्षी रही है। यह मंदिर देखने में बिलकुल केदारनाथ मंदिर की भांति लगता है। इसमें भगवान विष्णु की चांदी की मूर्ति विद्यमान है, जिनके साथ देवी लक्ष्मी, भगवान बद्रीनारायण, देवी सीता, भगवान रामचंद्र एवं भगवान कुबेर की प्रतिमाएं भी हैं। मंदिर के समक्ष ब्रह्म शिला उसी जगह को इंगित करती है, जहां पर विवाह हुआ था। मंदिर परिसर में तीन पवित्र कुंड भी विद्यमान हैं जो रुद्र कुंड, विष्णु कुंड एवं ब्र(म कुंड कहलाते हैं। अपने चिकित्सकीय गुणों के लिए प्रसिद्ध इन कुंडों में जल मुख्य सरस्वती कुंड से ही आता है। ऐसा माना जाता है कि सरस्वती कुंड में जल भगवान विष्णु की नाभी से झरता है। त्रियुगीनारायण मंदिर के ठीक बाहर एक अन्य छोटा-सा मंदिर स्थित है, जो पंचनामा देवताओं को समर्पित है। मंदिर से 2 किलोमीटर दूर चलकर जाने पर आपको एक गुफ़ा मिलेगी, जो देवी गौरी को समर्पित है। हर वर्ष अगस्त एवं सितम्बर माह में मंदिर में वार्षिक महोत्सव आयोजित किया जाता है, जो बेहद उल्लासपूर्ण आयोजन होता है। 

अन्य आकर्षण