चार धाम में से एक, केदारनाथ मंदिर में दर्शनों के लिए हर वर्ष लाखों श्रद्धालुगण आते हैं। 3,584 मीटर ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुगणों को एक कठिन किंतु भक्ति-भाव से परिपूर्ण यात्रा करनी होती है। यह भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों (भगवान शिव के मंदिरों) में से एक है, इसलिए यह विशेष रूप से पावन माना जाता है। इस मंदिर के गर्भगृह में शंकुधारी शिला विद्यमान है, जिसे भगवान शिव के सदाशिव (सदा शुभ) रूप में पूजा जाता है। लगभग 1,000 वर्ष पुराना यह मंदिर एक आयताकार मंच पर व्यवस्थित विशाल पत्थर के स्लैब से निर्मित है। मंदिर के गर्भगृह तक जाने वाली सीढ़ियों पर पाली भाषा में शिलालेख लिखे हुए हैं। मंदिर की भीतरी दीवारों पर विभिन्न देवताओं की प्रतिमाएं एवं हिंदुओं की पौराणिक कथाओं के चित्र बने हुए हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण ऋषि आदि शंकराचार्य द्वारा 8वीं सदी में कराया गया था। बीते समय में इस मंदिर का अनेक बार जीर्णोद्धार हो चुका है। हर वर्ष नवम्बर में, सर्दियों के मौसम में जब पूरा मंदिर बर्फ़ की चादर में ढक जाता है, तब भगवान शिव की प्रतिमा को केदारनाथ मंदिर से स्थानांतरित करके ऊखीमठ ले जाया जाता है। मई में, भगवान की प्रतिमा केदारनाथ में पुनःस्थापित कर दी जाती है। 

इस धार्मिक स्थल के पीछे एक रोचक पौराणिक कथा भी है। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध लड़ने के बाद पांडव अपने पापों के प्रायश्चित के लिए भगवान शिव को खोज रहे थे, उनसे बचने के लिए शिव ने स्वयं को एक बैल के रूप में बदल लिया था। पांडवों ने जब शिव को खोज लिया तो वह धरती में छिप गए, तब ज़मीन के बाहर केवल उनका कूबड़ ही दिख रहा था।

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