भारत के पूर्व में स्थित उत्तराखंड राज्य यूं तो बहुत सी बातों के लिए प्रसिद्ध है, पर यहां एक ऐसा मंदिर है, जो इस जगह को और अधिक महत्वपूर्ण ना देता है। कटारमल गांव में उत्तराखंड के सबसे महत्वपूर्ण सूर्य मंदिरों में से एक यहां स्थित है। कोसी नदी पर बने पुल के किनारे बना यह मंदिर बेहद खूबसूरत और मनभावन दृश्य प्रस्तुत करता है। कत्यूरी राजवंश के राजा कटारमल्ला द्वारा 9वीं सदी में इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। जैसा कि इस मंदिर के नाम से ही पता चलता है, यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है। यहां सूर्य देव अपने प्राचीन काल के नाम से यानी बूढ़ादीत या वृद्धदित्य के नाम से जाने जाते हैं। मंदिर परिसर में सूर्य देवता के अलावा शिव-पार्वती और लक्ष्मीनारायण की मूर्तियां भी विराजमान हैं। यह मंदिर अपने बेहद खूबसूरत शिल्प और अनूठी वास्तु-कला के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें बेहद सुंदर नक्काशी वाले खंबे तथा द्वार शामिल हैं। इन पर पत्थर तथा धातु से बनी मूर्तियां उकेरी गयी हैं। क्योंकि सूर्य पूरब से उदय होता है और यह मंदिर भी सूर्य देव को समर्पित है, इसलिए इस मंदिर को पूर्वमुखी बनाया गया है, ताकि सूर्य की पहली किरण यहां स्थापित शिवलिंग पर बिलकुल सीधी पड़े। मंदिर का गर्भगृह प्राचीनतम संरचना, जिसके चारों ओर 45 छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। यहां तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को हवाल्बघ और कोसी नदी के किनारे स्थित मातेला गांव को पार करते हुए करीब 3 किमी तक पैदल आना पड़ता है। मंदिर के दरवाजे अब यहां से हटाकर दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में संरक्षित कर दिये गये हैं। समुद्रतल से करीब 2116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर अल्मोड़ा से 17 किमी की दूरी पर स्थित है तथा इसे वृद्धदित्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। 

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