कौसानी बस स्टैण्ड से महज एक किमी की दूरी पर स्थित है प्रसिद्ध अनासक्ति आश्रम। सन 1929 में गांधीजी ने यहां कई दिनों तक प्रवास किया था और आज भारी संख्या में लोग यहां उनके नैतिक मूल्यों को समझने के लिए आते हैं। इस जगह के बारे में प्रसिद्ध है कि गांधीजी यहां के अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य से इतने ज्यादा अभिभूत हो गये थे कि उन्होंने इस जगह को भारत के स्विटजरलैंड का नाम दे डाला। ऐसा भी माना जाता है कि यही वह स्थान है, जहां उन्होंने अनासक्ति योग के सिद्धांत पर काम किया था, जो बताता है कि राग और द्वेष से असंपृक्त हो जाना ही अनासक्ति है। यहां आश्रम में एक छोटा सा प्रार्थना कक्ष भी है, जहां रोजाना सुबह एवं सांय प्रार्थना की जाती है। कुमांऊ क्षेत्र के बाकी इलाकों की तरह यहां से भी विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला का मनभावन दृश्य दूर-दूर तक दिखाई पड़ता है। आमतौर पर बेहद शांत रहने वाली इस जगह में एक प्रसिद्ध स्थानीय पुस्तकालय भी है, जो यहां की शांति में थोड़ी सी हलचल पैदा करता है। आश्रम में एक छोटा सा पुराना संग्रहालय भी है, जिसमें महात्मा गांधी के यहां रुकने के दौरान के फोटोग्राफ्स लगे हैं और उनसे जुड़ी कई तरह की अन्य वस्तुएं भी यहां रखी गयी हैं। आश्रम के भीतर ही एक अध्ययन और शोध केन्द्र भी है, जहां गांधीजी की विचारधारा का प्रचार-प्रसार का कार्य किया जाता है। जो लोग इस जगह को और करीब से महसूस करना चाहते हैं या और गहराई से जानना चाहते हैं, उनके लिए यहां रुकने की भी व्यवस्था है। यहां कुछ कमरे बने हुए हैं, जिन्हें इच्छुक सैलानी किराये पर लेकर रह सकते हैं। 

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