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दगशाई लगभग 1,734 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक खूबसूरत पहाड़ी शहर है। यह फिलहाल तक पर्यटकों के बीच ज्यादा लोकप्रिय नहीं था। इसके बावजूद भी दगशाई अपनी प्राचीन विरासत से पर्यटकों को अपनी तरफ खींचता है। यह सोलन के सबसे पुराने छावनी कस्बों में से एक है। रात्रि में यहां से चंडीगढ़ और पंचकुला का सुंदर दृश्य दिखाई पड़ता है। रात्रि में पर्यटक यहां से परवानु टिंबर ट्रेल भी देख सकते हैं।पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह से पांच गांवों को मुक्त कराकर ईस्ट इंडिया कंपनी ने वर्ष 1847 में दगशाई की स्थापना की थी। इस नगर की प स्थापना क्षय रोगियों के इलाज के लिए की गई थी। यहां एक अंग्रेजों के जमाने का कब्रिस्तान है; जहां से घाटी का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, दगशाई नाम 'दाग-ए-शाही' से आया था; जिसका अर्थ शाही निशान होता है। कहा जाता है कि मुगल शासन के दौरान, अपराधियों के यहां भेजे जाने के पहले उनके माथे पर एक शाही निशान लगाया जाता था।दगशाई सेंट्रल जेल की एक और विशेषता यह है कि वर्ष 1849 में इसे संग्रहालय में बदल दिया गया। यह जेल उस समय सुर्खियों में आया; जब आयरिश स्वतंत्रता सेनानियों को यहां मार डाला गया। स्थानीय लोगों का दावा है कि, दगशाई से लगभग 10 किमी दूर स्थित सोलन, एक प्रेतबाधित शहर है, लेकिन इसका अब तक कोई प्रमाण नहीं मिला है। दगशाई के कब्रिस्तान को ब्रिटिश जमाने का माना जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां एक ब्रिटिश मेजर जॉर्ज वेस्टन निवास करते थे। वे पेशे से चिकित्सक थे और अपनी नर्सिंग सहायक पत्नी के साथ यहां रहते थे। शादी के कई वर्षों के बाद भी इस दम्पति की कोई संतान न थी। एक घुमंतू साधु ने इन्हें आशीर्वाद के रूप में एक ताबीज दिया। उनकी पत्नी मेरी को शीघ्र ही गर्भधारण हो गया। लेकिन उनकी खुशी की ज्यादा उम्र नहीं थीं क्योंकि वर्ष 1909 में गर्भावस्था के 8वें महीने में; उसकी मृत्यु हो गई। जॉर्ज ने अपनी पत्नी और अपने अजन्मे बच्चे के लिए सुंदर कब्र बनवाई। यह कब्र इंग्लैंड से लाए गए संगमरमर से बनवाई गई है। कहा जाता है कि मेरी का भूत अभी भी अपनी कब्र के आस-पास भटकता है।