चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा लगभग 320 ईसा पूर्व में बनवाया गया ऊपरकोट या ऊपरी गढ़ जूनागढ़ शहर का सबसे प्राचीन हिस्सा है। इसकी दीवारें कहीं-कहीं 12 फुट तक ऊंची हैं और ऐसा माना जाता है कि एक बार इस किले की 12 साल तक घेरेबंदी की गई थी। इस किले के भीतर एक जामा मस्जिद है जो छत पर बने अपने दुर्लभ प्रांगण और नक्काशीदार अष्टकोणीय खुली संरचना के लिए जानी जाती है। इस मस्जिद से सटी हुई कुछ बौद्ध गुफाएं हैं जो कभी बौद्ध-भिक्षुओं के रहने के लिए इस्तेमाल की जाती थीं और जिनका निर्माण पत्थरों को काट कर करीब दो हजार साल पहले किया गया था। इस किले में 300 फुट गहरी खाई है जिसमें कभी पानी भर कर मगरमच्छ छोड़े जाते थे ताकि अगर कोई आक्रमणकारी किले की ऊंची दीवारों पर चढ़ने में कामयाब हो जाए तो उसे इस खाई में गिरा दिया जाए। किले के मुख्य प्रांगण में शानदार नक्काशीदार खंभे हैं। किले के परिसर में पत्थरों को काट कर बनाई गई दो बावड़ियां हैं जिन्हें अडी कडी वाव और नवघन कुंवो के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि ये बावड़ियां एक हजार साल पुरानी हैं। पुरातात्विक साक्ष्य बताते हैं कि इस किले में ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी से लगातार बसावट रही है। किले के भीतर विभिन्न कालों के अवशेष देखे जा सकते हैं।

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