भगवान गणेश को समर्पित इडागुंजी एक अत्यंत लोकप्रिय और पवित्र स्थान है, जहाँ हर साल लाखों तीर्थयात्री आते हैं। चैथी-पाँचवीं शताब्दी के आसपास निर्मित यह मंदिर इस क्षेत्र के अनेक धार्मिक आख्यानों और विश्वासों के केंद्र में है। एक पौराणिक आख्यान में बताया गया है कि यह वही स्थान है जहाँ भगवान गणेश ने धरती (पृथ्वी) पर अवतार लिया था। यह द्वापर युग के समापन और कलियुग के आरंभ का समय था। इन दो युगों के संधिकाल (संक्रमण काल) की वजह से इस क्षेत्र के मुनिजन अनुष्ठान नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने देवताओं और मनुष्यों के बीच संपर्क की कड़ी जोड़ने वाले नारद मुनि से विनती की कि सभी बाधाओं को हरने वाले एकमात्र प्रभु गणेश ही हैं जो उनकी सहायता कर सकते हैं। भगवान गणेश ने नारद मुनि की बात मान ली और शारावती नदी के किनारे इसी स्थान पर अवतार लिया। ऐसा माना जाता है कि बाधाओं को हरने और उनके अनुष्ठानों की रक्षा करने के लिए भगवान गणेश का आभार जताने के लिए इस मंदिर का निर्माण स्वयं इन मुनियों ने ही किया था।

इस मंदिर की एक रोचक विशेषता यह है कि यहाँ भगवान गणेश अपने दुर्लभ द्विभुज अवतार में दिखाई देते हैं। यह एक खड़ी मुद्र है जिसमें वह एक हाथ में मोदक (एक किस्म की मिठाई) और दूसरे हाथ में कमल की कली थामे नजर आते हैं। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के बीच एक ही दिन के अंदर इस क्षेत्र में बने छह मंदिरों, जिनमें से इडागुंजी प्रमुख है, की परिक्रमा कर लेने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है और श्रद्धालुओं को भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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