कोटि तीर्थ एक मानव-निर्मित पवित्र कुंड है, जो एक महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक पड़ाव माना जाता है। ‘कोटि तीर्थ’ का अर्थ है हजारों स्रोत यानी चश्मे (झरने)। आम प्रचलन है कि इस क्षेत्र में अनेकों मंदिरों और वेदियों में दर्शन करने से पहले श्रद्धालु इस कुंड में डुबकी लगाते हैं। छह एकड़ क्षेत्रफल में विस्तृत इस पवित्र कुंड के किनारों पर अनेक पुरोहित और मठ वासी (संन्यासी) अनुष्ठान और प्रार्थना करते दिखाई देते हैं। यह कुंड तीन ओर से रंग-बिरंगे मंदिरों और मठों (विहारों) से घिरा हुआ है। कुंड के बीचोबीच एक शिवलिंग स्थित है जो हमेशा प्रकाशित रहता है। मंदिरों और साथ ही साथ नारियल के वृक्षों को प्रतिबिंबित करता कुंड का शांत जल परावर्तित आध्यात्मिकता का शांतिकारक परिवेश उपलब्ध कराता है।

दंतकथा है कि पौराणिक पक्षी गरुड़ ने शतशुंग पर्वत (भगवान ब्रह्मा के महल) को उठा लिया और लेकर उड़ गया। जब इस पर भगवान ब्रह्मा का ध्यान गया तो वे नीले पड़ गए और उन्होंने गरुड़ को इसे तत्काल नीचे धरती पर रख देने का आदेश दिया। गरुड़ ने इसे आंशिक रूप से धरती पर और आंशिक रूप से सागर पर रख दिया। ऐसा करते समय आधे तीर्थ (एक करोड़) पानी में डूब गए और बचे हुए एक करोड़ तीर्थ यहाँ गोकर्ण में, धरती पर बने रह गए।

अन्य आकर्षण