ये राज्य के सबसे बड़े जलप्रपात हैं और एशिया के दूसरे नम्बर के सबसे ऊँचे जलप्रपात। एक शख्स को केवल इसलिए इस भव्य स्थल का दर्शन करना चाहिए कि वह जलप्रपात के चारों ओर बसे हरित पन्ने से दिखते सघन वनों से होकर बलखाती-उमड़ती और अनेक धाराओं में विभाजित होकर गिरती शारावती नदी के जलराशि के गरजते सौंदर्य का साक्षी बन सकें। यह शक्तिशाली जलप्रपात लगभग 253 मीटर ऊँचा है। अपनी आरंभिक गति (छलांग) के बाद नदी जिन चार धाराओं में बँट जाती है उन्हें लागों ने स्थानीय तौर पर राजा, रानी, गरजने वाला और रॉकेट का नाम दे रखा है। जलप्रपातों के ठीक पीछे, लिंगनमक्की डैम (जलाशय) शारावती नदी के भयावह वेग को थाम लेता है। यह डैम विशाल मात्रा में नदी के जल को अपने उदर में समेट लेता है। डैम से छोड़े गए पानी से इन जलप्रपातों की प्रतिपूर्ति होती है। इसका अर्थ यह है कि सामान्य दिनों में, जलप्रपातों की धारा पतली और नियंत्रित बनी रहती है लेकिन यदि किसी को नदी और उसके प्रवाह का असली वैभव देखना हो तो वह यहाँ मानसून (बरसात) के दिनों में आयें जबकि यह डैम नदी की ताकत के आगे कहीं नहीं ठहरता। लेकिन तब भी जबकि जलधारा पतली-सी हो, जलप्रपात एक सुहाना मंजर पेश करता है जबकि चट्टानें दिखाई पड़ती हैं जो अन्यथा जलधारा के पीछे छिपी रहती है। साहसिक यात्री जलप्रपात के नीचे की ओर चल कर जा सकते हैं या फिर आड़े-तिरछे 1,000 कदम चल कर नीचे चट्टानों के मध्य बने कुंड तक जा सकते हैं। कुंड के कुहरे के बीच इंद्रधनुष का दीदार हो जाना बेहद आम नजारा है। लोगों को ताकीद की जाती है कि वे चट्टानी कुंड में स्नान करने या उसमें प्रवेश करने से बचें क्योंकि यहाँ जल की कोई थाह नहीं। कन्नड़ में ‘जोग’ का अर्थ है गिरना या झड़ना और बरसात के दिनों में यह हरा-भरा पर्यटक स्थल सबसे लोकप्रिय, सुंदर और जमघट वाली जगह बन जाता है, जबकि जलप्रपात अपनी पूरी रवानी पर होता है। ये जलप्रपात गोकर्ण से 121 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।

अन्य आकर्षण