गंगटोक से करीब 64 किमी दूर और करीब 4 हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है बाबा हरभजन सिंह का स्मारक। इस स्मारक को भारतीय सेना की 23वीं पंजाब रेजिमेंट के वीर सिपाही हरभजन सिंह की याद में बनवाया गया है, जो सन 1968 में पूर्वी सिक्किम में स्थित अपने बटालियन स्टेशन तुकुला (तुक्ला) से डोंगचुई (डोंग तुकुला) तक खच्चरों के एक जत्थे को हांकते हुए जा रहे थे और रहस्यमयी ढंग से रास्ते ही में कहीं गायब हो गये थे। फिर जब तुक्ला और डैंग दुक्ला के निर्जन इलाके में गुमशुदा सिपाही हरभजन सिंह की तलाश शुरू की गयी तो तीन दिन बाद उनका शव उसी निर्जन स्थान पर पाया गया। लोगों का ऐसा विश्वास है कि उनके मृत शरीर तक पहुंचने का मार्ग भी बाबा हरभजन सिंह ने खुद ही लोगों को सुझाया था।

बाद में उनकी रेजिमेंट के ही कुछ सिपाहियों ने उन्हें सपने में देखने का दावा किया और फिर सपने में मिले आदेशानुसार इस स्थान पर उनका स्मारक बनाया गया, जहां एक मंदिर की तरह लोग अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं। लोगों का मानना है कि बाबा हर रात अपनी समाधि पर आते हैं और अपनी वर्दी पहनकर इस पूरे इलाके में गश्त लगाते हैं। बाबा हरभजन की इस समाधी से कई और भी कई बातें यहां आने वाले पर्यटकों को हैरान कर सकती हैं। जैसे कि लोग बताते हैं कि स्मारक में उनके लिए बिछाए गये बिस्तर पर अगले दिन सिलवटें मिलती हैं तथा उनके पालिश किये गये जूते अगले दिन गंदे मिलते हैं। मानो कोई पूरी रात उस बिस्तर पर आकर सोया था या जूते पहनकर किसी ने इलाके में गश्त की है। 

सेना में इस जगह को लेकर इतनी अटूट आस्था है कि उन्हें लगता है कि हरभजन आज भी उनके साथ हैं और इसलिए हर साल सालाना छुट्टियों के समय दो सिपाही उनकी पुरानी वर्दी को लेकर सिलिगुड़ी से पंजाब स्थित उनके पैतृक निवास स्थान तक जाते हैं, साथ ही उनकी तन्ख्वाह हर माह विधिवत ढंग से उनके घरवालों को पहुंचाई जाती है। गश्त के लिए  पहाड़ों  पर और ऊपर चढ़ने से पहले अक्सर सिपाही यहां रुक कर प्रार्थना करते हैं। अब यह स्मारक एक मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हो गया तथा पर्यटक भी यहां आकर एक सच्चे सिपाही के बलिदान के प्रति अपने सच्चे दिल से आस्था व्यक्त करते हैं। यहां हरभजन सिंह की एक बहुत बड़ी फोटो लगाई गयी है, जिसके सामने श्रद्धालु पानी की बोलत आस्था व्यक्त करते हुए अर्पित करके जाते हैं। कहा जाता है कि पहाड़ से लौटते समय यदि इस बोतल का पानी पी लिया जाए तो सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। 

बाबा हरभजन सिंह का असली मंदिर नाथंग घाटी में उनके बंकर के पास था, जहां आम लोगों के लिए पहुंचना बहुत मुश्किल था। इसलिए सन 1982 में एक नया मंदिर-स्मारक कुपुप झील और नाथंग घाटी की ओर जाने वाले मार्ग पर बना दिया गया। यही रास्ता मेनमेचो झील की तरफ भी जाता है।   

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