जट गंगा और भागीरथी नदियों के संगम पर स्थित खूबसूरत भैरो घाटी में उतना ही खूबसूरत भैरो नाथ का मंदिर है। हालांकि यह मंदिर अपने आध्यात्मिक के कारण प्रति वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है लेकिन इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता से आकर्षित होकर भी यहां आने वालों की संख्या कोई कम नहीं है। आसपास घने, हरे-भरे वन और चेनाब व तवी नदियों से घिरी यह घाटी ऐसे स्थान पर स्थित है जहां शिवालिक पर्वतमाला आकर मैदानों से मिलती है।

ऐसी कथा है कि जब भगवान शिव की जटाओं में उतरने के बाद गंगा नदी गंगोत्री की ओर बढ़ी तो उसने रास्ते में तपस्या कर रहे जाह्नु ऋषि की तपस्या भंग कर दी। इससे क्रुद्ध होकर ऋषि ने गंगा के बहाव को अपनी जंघाओं के बीच समेट लिया। तब गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने वाला राजा भगीरथ ने उनसे प्रार्थना की कि वह गंगा को अपने कानों से बाहर आने की अनुमति दें। मान्यता है कि भगवान शिव ने तब भैरो को इस स्थान की सुरक्षा करने के लिए नियुक्त किया जिसके बाद से इस स्थान का नाम भैरो घाटी पड़ गया। यहां स्थित भैरो मंदिर श्रद्धालुओं को अपने आध्यात्मिक सौंदर्य से भरपूर आकर्षित करता है।

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