हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला एक ऐसा एकांत प्राकृतिक स्थान है, जो धुंध से लिपटे हुए हिमालय में मौलिक हरित विस्तार लिए हुए है और ओक, देवदार, चीड़ एवं शंकुधर वृक्षों के घने आवरण से घिरा हुआ है। हालांकि इसकी मौलिक सुंदरता आपको आश्चर्यचकित कर देती है, लेकिन इसका बीहड़ इलाका साहसिक खेलों जैसे ट्रेकिंग, पैराग्लाइडिंग या पहाड़ पर चढ़ाई करने के लिए आदर्श है। सुरम्य दृश्यों के बीच से निकलते हुए मनोहारी टॉय ट्रेन में मन को मुग्ध करने वाली यात्रा एक अतिरिक्त आकर्षण होता है।धर्मशाला, तिब्बती बौद्ध नेता दलाई लामा के घर के रूप में प्रसिद्ध है और बौद्ध धर्म का एक लोकप्रिय केंद्र है। रंग-बिरंगे मठों से युक्त, यह स्थान पर्यटकों को ध्यान लगाने और आसपास की शांति और निस्तब्धता में डूब जाने का शानदार अवसर प्रदान करता है। यहां का सबसे प्रमुख आकर्षण है दुनिया के सबसे खूबसूरत क्रिकेट स्टेडियमों में से एक धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम, जहां पर कई अंतर्राष्ट्रीय और इंडियन प्रीमियर लीग मैच खेले गए हैं।पर्यटक हरे-भरे भूदृश्यों के बीच नेचर वॉक का आनंद उठा सकते हैं या यहां की झीलों के किनारे फैले स्थानों पर पिकनिक का आनंद ले सकते हैं। ज्यादातर मोड़ों पर जंगल में बने विलक्षण चर्च और प्राचीन मंदिर आपका स्वागत करते नजर आएंगे। धर्मशाला का दिल अपने हलचल भरे और जीवंत बाजारों में धड़कता है, जो रंगों और गतिविधियों का संगम है। इन बाजारों में उत्कृष्ट बहुरंगी तिब्बती बौद्ध थन्ग्का पेंटिंगों और लघु बुद्ध प्रतिमाओं से लेकर संगीतमय पात्र और तिब्बती हस्तशिल्प जैसी अच्छी-अच्छी चीजें मिलती हैं। यदि आप दिली खुशी देनेवाली चीजों की खरीदारी करना चाहते हैं तो आप प्रामाणिक तिब्बती व्यंजनों जैसे थुक्पा (एक सूपी नूडल डिश), मोमोज, गोल्डन फ्राइड बेबी कॉर्न, मिट्ठा (चावल और किशमिश आदि के साथ तैयार की जाने वाली स्थानीय मिठाई) आदि का नमूना साथ ले जाना न भूलें।इस शहर को अक्सर लघु तिब्बत कहा जाता है। इस शहर की विशिष्ट समृद्ध संस्कृति को देखने के लिए पर्यटक संग्रहालय में पगडंडी के सहारे घूम सकते हैं या प्रसिद्ध नॉर्बुलिंगका संस्थान में जा सकते हैं, जिसे तिब्बती बौद्ध धर्म की कला और संस्कृति का द्वारपाल कहा जाता है। आप स्थानीय कारीगरों के कामों को भी देख सकते हैं जो वहां पर थन्ग्का पेंटिंग और एप्लीक कार्य, मूर्ति बनाने और सजावटी लकड़ी की नक्काशी, लकड़ी की पेंटिंग, बुनाई और सिलाई के कलारूपों का अभ्यास कर रहे होते हैं।धर्मशाला अंग्रेजों के लिए गर्मियों के अवकाश बिताने का स्थान हुआ करता था और वर्ष 1959 में यह तिब्बती बस्ती के रूप में विकसित हुआ, जब दलाईलामा को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ऊपरी धर्मशाला स्थित मैक्लोडगंज में रहने की अनुमति दी।