नाटी

देश में सबसे प्रसिद्ध लोकगीत नृत्यों में से एक है सिरमौर नाटी, जो मुख्य रूप से भारत के उत्तरी भाग में प्रचलित है। उत्तर भारतीय नृत्यों के शुरुआती प्रकारों में, हिमाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए जाने वाले नाटी अभिनयपरक अभिव्यक्ति का एक आनंदमय रूप है। इसमें जटिल चाल शामिल हैं और इसका प्रदर्शन ज्यादातर नए साल के उत्सवों के दौरान किया जाता है जिसे लोसाई कहा जाता है। एक समूह में प्रदर्शन करने वाले इस नाटी नामक नृत्य को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में सबसे बड़े सामूहिक प्रदर्शन वाले लोकनृत्य के रूप में शामिल किया गया है। पर्यटक अपनी यात्रा के दौरान इस नृत्य के शानदार प्रदर्शन को देख सकते हैं और पारंपरिक पोशाक पहनी नर्तकियों को स्थानीय संगीत की धुनों पर थिरकते हुए देखकर आनंदित हो सकते हैं।

नाटी

चरसय तरसय

बिरशू निरशू के रूप में जाने जाने वाले इस नृत्य रूप को मार्च-अप्रैल में केवल विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है। प्रदर्शन के दौरान किसी भी संगीत वाद्ययंत्र का उपयोग नहीं किया जाता है और ये महिलाएं गीतों की धुन पर नृत्य करती हैं। यह शाम को शुरू होता है और अगले दिन सुबह समाप्त होता है।

चरसय तरसय

बुद्ध की मूर्तियां

बौद्ध धर्म के संस्थापक की मूर्तियां शांति, समृद्धि, भाग्य और धन से जुड़ी हुई हैं, जिसे अक्सर माना जाता है कि यह उनके आकार, प्रकार और मुद्रा पर निर्भर करता है। आप धर्मशाला में इन मूर्तियों की किसी एक किस्म की खरीद सकते हैं और उन्हें स्मृति-चिन्ह के रूप में घर ले जा सकते हैं।

बुद्ध की मूर्तियां

थन्ग्का

थन्ग्का पेंटिंग बौद्ध कला का एक लोकप्रिय रूप और एक सुंदर अभिव्यक्ति है, जो रेशम या कपास के स्क्रॉल पर बनाया जाता है एवं जिसका उपयोग बौद्ध दर्शन के संदेशों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। उन्हें जटिल एप्लीक या कढ़ाई के रूप में भी किया जा सकता है। इन चित्रों में दृश्यों, मंडलों और देवताओं के माध्यम से बौद्ध धर्म और उसके दर्शन को पारंपरिक रूप से दर्शाया जाता है। जबकि वे सौंदर्य की दृष्टि से काफी आकर्षक होते हैं। उनका उपयोग ध्यान के उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है क्योंकि अभ्यासकर्ता चित्रों में उकेरे गए देवताओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं और एक स्पष्ट दृष्टि विकसित करने का प्रयास करते हैं।इससे पहले, इन चित्रों का उपयोग गुरूओं के जीवन के बारे में सिखाने के लिए किया जाता था। ऐसा कहा जाता है कि एक लामा अपने धर्म का प्रचार करने के लिए थन्ग्का का संग्रह-सूची लेकर घूमता रहता था। पवित्र माने जाने वाले इस कला रूप को 7वीं शताब्दी का कहा जाता है, जब इसकी उत्पत्ति नेपाल में हुई थी। थन्ग्का चित्रों में सबसे प्रमुख मेनरी है, जो अपने जीवंत रंगों और एक केंद्रीय व्यक्तित्व द्वारा प्रतिष्ठापित होता है और जो जीवन में घटनाओं और लोगों से घिरा हुआ होता है।थन्ग्का पेंटिंग बनाने की एक जटिल प्रक्रिया है। सबसे पहले, कैनवास का एक टुकड़ा लकड़ी के एक फ्रेम पर सिला जाता है। कपड़े की बनावट गेसो, चॉक और बेस पिगमेंट के मिश्रण के साथ कई उपचारों से गुजरती है और कैनवास से पहले ग्लास का उपयोग किया जा सकता है। फिर देवता की रूपरेखा पेंसिल से बनाई जाती है और काली स्याही से आरोपित किया जाता है। इसके लिए रंग वनस्पति पिगमेंट, पानी, चिपकने वाले पदार्थों और कुचले गए खनिजों को मिलाकर बनाया जाता है। कभी-कभी, लापीस लज़ुली जैसे कीमती तत्वों का भी उपयोग किया जाता है। अंत में, शुद्ध सोने के रंग से चित्रित किया जाता है और पेंटिंग को ब्रोकेड बोर्डर में बनाया जाता है। थन्ग्का को पूरा करने में कलाकार को छह सप्ताह तक का समय लग सकता है।

थन्ग्का

संगीतमय कटोरे

इनका उपयोग मधुर धुन बनाने के लिए किया जाता है। यह संगीतमय कटोरा एक ऐसा संगीत वाद्ययंत्र है जिसे जब टकराया जाता है या जब इसे मारा जाता है या रगड़ा जाता है या हिलाया जाता है, तो इससे सुंदर ध्वनि निकलती है। उल्टी घंटी जैसी संरचना वाली यह कटोरी विभिन्न आकारों में आती है। अधिक महीन ध्वनियों के लिए आप छोटे कटोरे खरीद सकते हैं, जबकि गहरी धुनों के लिए, बड़े कटोरे पसंद किए जा सकते हैं। आमतौर पर, गायन वाले इस संगीतमय कटोरे पर प्रहार करने के लिए लकड़ी के हथौड़े का उपयोग किया जाता है। चूंकि संगीत को अक्सर ध्यान और उपचार का एक महत्वपूर्ण घटक माना जाता है, इसलिए कटोरे का उपयोग आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो ध्वनियां कटोरे से बाहर निकलती हैं, वे ऊर्जा देती हैं और वह उर्जा आत्मा, शरीर और मन की टूटी हुई आवृत्तियों को जोड़ने के उपयोग में लाई जाती है।संगीतमय कटोरा बनाने की सबसे आम विधि है-एक सपाट धातु की चादर को कम से कम तीन लोगों द्वारा कटोरे के आकार में बनाया जाना। किनारों को झुका कर इसे तब तक पीटा जाता है जब तक कि वे चिकने न हो जाएं। कटोरा बनाने की एक अन्य विधि है-मोल्ड में पिघली हुई धातु को डालना। कटोरे के दूसरे हिस्से यानि गर्दन को कटोरे के साथ वेल्डिंग करके बनाया जाता है, जिसके बाद इसे पॉलिश किया जाता है। इस विधि से ध्वनियां निकलती हैं, जो लंबे समय तक सुनाई देती हैं। कटोरा को मीनाकारी द्वारा अलंकृत किया जाता है।

संगीतमय कटोरे