बसवकल्याण

बसवकल्याण शहर दक्षिण भारत के सबसे पुराने और सबसे भव्य किलों में से एक, अपने ऐतिहासिक बसवकल्याण किले के लिए सबसे अधिक जाना जाता है। 10 वीं शताब्दी में निर्मित यह किला यह वास्तव में एक अद्भुत संरचना है। इसे  रणनीतिक रूप से एक रक्षा बिंदु के रूप में बनाया गया था और पहाड़ियों पर बिखरी चट्टानें इस मजबूत किले की दीवारों के साथ परस्पर जुड़ी हुई हैं। किले में प्रवेश सात द्वारों से होता है, जिनमें से पांच भलीभांति संरक्षित हैं। मुख्य द्वार पर बुलंद गलियारों वाली एक ठोस मेहराब स्थित है। इस मेहराब से दो सीढ़ियाँ जुड़ी हुई हैं, जिनके माध्यम से गलियारों तक पहुँचा जा सकता है। इस किले के मुख्य द्वार को अखंड दरवाजा कहा जाता है और इसे लाल पत्थर के चार प्रस्तरों से बनाया गया है।  

अतीत में कल्याणी के रूप में जाना जाता बसवकल्याण 1050 से 1195 तक पश्चिमी चालुक्यों की राजधानी थी। कलचुरियों ने भी यहां अपनी राजधानी बनाए रखी। यह लिंगायत सुधारवादी, बासवन्ना की जन्मभूमि भी है, जो वीरशैवों के शैव संप्रदाय के संस्थापक थे। बासवकल्याण में बसवन्ना की सबसे बड़ी मूर्तियों में से एक स्थित है, जो हर साल बड़ी संख्या में आगंतुकों को आकर्षित करती है।  

बसवकल्याण

भालकी

बीदर के बाहरी इलाके में स्थित, भालकी एक लीक से हटकर भ्रमण स्थल है जो ज्यादातर इतिहास-प्रेमियों को आकर्षित करता है। यहाँ का मुख्य आकर्षण भालकी किला है जो 1820 और 1850 के बीच नेपाल के खास राजपूत शासक राजा जंग बहादुर के अधीन रामचंद्र जाधव और धनजी जाधव द्वारा बनाया गया था। काले पत्थर से निर्मित यह किला पाँच एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है, तथा इस किले में मराठा सेना के हथियारों और गोला-बारूद के डिपो का एक समृद्ध संग्रह स्थापित है। इसकी संरचना चतुष्कोणीय है और इसमें एक गढ़ और 20 फुट ऊंची दीवारें शामिल हैं। ब्रिटिश शासन के दौरान यह किला हैदराबाद के निज़ाम के कब्जे में आ गया। इसमें दो महत्वपूर्ण मंदिर भी स्थित हैं: कुंभेश्वर मंदिर जो इसके परिसर में ही स्थित है और भालकेश्वर मंदिर जो थोड़ा दूर स्थित है। किले की दीवार के एक तरफ एक सीढ़ीदार कुआँ है और दूसरी तरफ एक संकरा मार्ग है जो उत्तर में एक आंगन की ओर जाता है। उत्तरी छोर पर, भगवान गणेश को समर्पित एक मंदिर है।  

भालकी

महमूद गवन मदरसा

1472 में निर्मित होने के बाद दो शताब्दियों तक कार्यशील रहा यह संस्थान आज एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। इसमें छात्रों के लिए 36 कमरे, एक बड़ा और प्रभावशाली पुस्तकालय, एक प्रसिद्ध मदरसा, एक प्रयोगशाला और छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों के लिए आवास सुविधाएं शामिल थीं। मदरसे के अलावा, यह इमारत अपनी कलात्मकता व स्थापत्य सुंदरता के कारण भी प्रसिद्ध थी। कुरान की आयतें भी शिलालेख का हिस्सा हैं। इसके प्रमुख द्वार को अति सुंदर बारीक़ पत्थरों के शिल्प से आच्छादित किया गया है। अपने बेहतरीन वक़्त में इस संस्थान की ओर हजारों विद्वानों के साथ-साथ इस्लामी दुनिया से बड़ी संख्या में छात्र आकर्षित हुआ करते थे। वास्तुकला की दृष्टि से यह मदरसा फेज़ के मदरसे के ही समान एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।  

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित इस स्मारक को महत्वपूर्ण संरचना घोषित किया गया है। इसका निर्माण महमूद गवाह या गवन ने किया था, जो बहमनी सल्तनत में आए एक व्यापारी थे। कुछ लोग कहते हैं कि वह फारस से निर्वासित थे, जबकि अन्य कहते हैं कि वह यहाँ व्यापार करने आए। अपने विनम्र स्वभाव और बौद्धिक श्रेष्ठता के कारण उन्हें आगे चल कर इस राज्य का प्रधानमंत्री बनाया गया था। वह न केवल शासकों बल्कि सामान्य आबादी से भी सम्मान प्राप्त करने में सफल रहे। अपने बेहतरीन वक़्त के दौरान इस संरचना में चार मीनारें थीं, जिनमें से एक आज भी यथावत है। 

महमूद गवन मदरसा

चौबारा टॉवर

Situated in the centre of Bidar town, this old cylindrical tower is 22 m high. It commands a great view of the entire plateau and was once used as a watchtower. Today, it is an important historical monument and a clock tower. The word 'chaubara' means a building facing in four directions. It is believed that the tower was built in the pre-Islamic period and follows semi-Islamic architecture. The tower has a circular base, which is 180 ft in circumference and 16 ft high. Small arched enclosures have been built along its lower parts and there is a large clock on top of the tower. The top is accessed by a winding flight of 80 steps. Four rectangular openings make sure that the tower gets enough light and air.

चौबारा टॉवर

अश्तूर के बहमनी मकबरे

कभी इस क्षेत्र के संप्रभु शासक रहे 12 प्रभावशाली बहमनी शासकों के मकबरे इस शहर के बाहरी इलाके में अश्तूर में स्थित हैं। 1436 से 1535 के बीच निर्मित यह मकबरे उस समय की वास्तुकला का बेहतरीन नमूना हैं। इनमें से सबसे प्रभावशाली अहमद शाह प्रथम (1422-1436) का मकबरा है, जो 30 मीटर से अधिक ऊंचा है। इसके अंदरूनी हिस्सों को आश्चर्यजनक रंगों और जटिल रूपलेखों में चित्रित किया गया है। अन्य मकबरे भी अद्भुत हैं और उनमें से कई की छतों पर चित्रकारी की गई है। यहाँ कुरान की आयतों को सोने के रंग में दीवारों पर सजाया भी गया है। पर्यटक यहाँ शानदार मेहराबों और बुलंद गुंबदों के नज़ारे भी कर सकते हैं। एक मकबरे में तो हिंदू धर्म से जुड़े स्वास्तिक चिन्ह को भी देखा जा सकता है। एक और उल्लेखनीय मकबरा अली बारिद का है, जिसमें 25 मीटर ऊंचा गुंबद है और जो एक चतुष्वर्गाकार उद्यान के बीच में स्थित है। सुल्तान अलाउद्दीन-शाह II की कब्र को बारीक़ पत्थरों से सजाया गया है और मेहराबों को नक्काशी से सुसज्जित किया गया है। मध्ययुगीन कला के उच्च पारखी भलीभांति संरक्षित इन इस्लामी चित्रों को बेहद पसंद करते हैं। इन मकबरों का विशिष्ट विन्यास यह है कि आंतरिक दीवारों को चित्रों से सजाया गया है जबकि बाहरी दीवारों को सुंदर व बारीक़ पत्थरों के काम से सुसज्जित किया गया है। 

अश्तूर के बहमनी मकबरे

रंगीन महल

16 वीं सदी में बनाया गया भव्य रंगीन महल, हिंदू और इस्लामी कला और वास्तुकला तकनीकों का एक अनूठा संलयन है। इसकी दीवारें महीन रंगीन पत्थरों और महीन सिल्मिट की सुंदर कला से सजी हैं। इस महल की सबसे आकर्षक विशेषताओं में से एक नक्काशीदार लकड़ी के स्तंभों के साथ एक आयताकार छह-तरफ़ा बड़ा कमरा है, जो विस्तृत सज्जाकारी के साथ-साथ नक्काशीदार काम से सजाया गया है। इसी तरह, आंतरिक कक्षों तक जा रहे लकड़ी के खाँचे भी सुंदर पत्थरों के काम द्वारा अलंकृत हैं। प्रवेश द्वार पर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं। यह मामूली आकार का महल बीदर के कई छुपे हुए आकर्षणों में से एक है, और इसे ‘रंगीन’ नाम सही ही दिया गया है। बीदर किला परिसर की सीमाओं के अन्दर यह सबसे अच्छी तरह संरक्षित संरचना है। इसके अतिरिक्त लकड़ी और पत्थर की नक्काशी के कई अद्वितीय उदाहरण और भी हैं, जो इस क्षेत्र के विशिष्ट सौंदर्य की शानदार मिसालें हैं। हालांकि इसका सबसे खूबसूरत तत्व कई दीवारों पर की गई वह रूपसज्जा है जिसमें एक अद्भुत काले पत्थर में बेहतरीन गुणवत्ता की सीपियाँ जड़ी गई हैं। प्रसिद्ध गुम्बज दरवाजा से कोई भी आसानी से रंगीन महल तक पहुंच सकता है। 

रंगीन महल