शनि शिंगनापुर

अहमदनगर से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित गांव-शनि शिगनापुर में आने वालों पर्यटकों को एक अनूठा धार्मिक अनुभव मिलता है। गांव के मुख्य देवता श्री शनेश्वर यानी भगवान शनिदेव हैं, जिन्हें शनि ग्रह का देवता माना जाता है। दिलचस्प बात यह है कि इस मूर्ति को, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह स्वयं प्रकट हुई थी, एक बड़े मंदिर के बजाय एक साधारण से मंच पर रखा गया है और भक्तगण स्वयं यहां धार्मिक अनुष्ठान कर सकते हैं। शनि देव को समर्पित दिवसों को, जैसे प्रत्येक शनिवार और प्रत्येक अमावस्या, यहांं बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। शनि देव को बुरी किस्मत लाने वाला माना जाता है और इसलिए उनकी पूजा उन्हें प्रसन्न करने का एक तरीका है ताकि उनके प्रभाव से पूजा करने वालों को बुरी किस्मत न मिले। इस गांव के बारे में एक और दिलचस्प बात यह है कि ग्रामीणों का भगवान शनि पर विश्वास इतना मजबूत है कि उनके यहां दरवाजों में चौखट नहीं है और न ही यहां ताले लगते हैं। उनका मानना है कि प्रभु उनकी किसी भी खतरे से रक्षा करते हैं। यहां तक कि दुकानों पर भी ताला नहीं लगाया जाता है।

शनि शिंगनापुर

गुरु गणेश तपोधाम

जालना में स्थित, गुरु गणेश तपोधाम जैनियों का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। इसे कर्नाटक केसरी के नाम से भी जाना जाता है। जैन ट्रस्ट श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, इस तपोधाम को संचालित करता है। यह कई अन्य संस्थाओं जैसे स्कूल, पुस्तकालय और गौशाला भी चलाता है। यह गौशाला, मराठवाड़ क्षेत्र की सबसे बड़ी गौशालाओं में से एक है। यहां आयोजित एक वार्षिक मेला, देश भर से बड़ी संख्या में पर्यटकों और भक्तों को आकर्षित करता है।कुंडलिका नदी के किनारे बसा जालना शहर घूमने-फिरने के लिए एक अच्छी जगह है। इसमें पूरब की ओर स्थित एक किला और एक गढ़ है जो इसके विशेष आकर्षण हैं। आज यह गढ़, नगरपालिका के कई कार्यालयों का घर है और यहां का किला भी देखने लायक है। यह आकार में चौकोर है और इसके कोनों पर गोलाकार बुर्ज बने हुए हैं।

गुरु गणेश तपोधाम

मत्स्योदरी देवी का मंदिर, अंबाद

अंबाद का मत्स्योदरी देवी का मंदिर, एक मछली के आकार वाली पहाड़ी पर बना हुआ है। यह जालना से 21 किमी दूर है। यह मंदिर मत्स्यदेवी को समर्पित किया गया है। इस देवी और इस शहर, दोनों के नाम इसी पहाड़ी के नाम से लिये गये हैं।यह मंदिर इस जगह के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है। मत्स्योदरी देवी मंदिर में अक्टूबर महीने के आसपास नौ दिनों के उत्सव नवरात्रा के प्रत्येक रातों को लोकप्रिय मेला लगता है। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार अंबद शहर की स्थापना ऋषि अंबद ने की थी, जो एक समय एक हिंदू राजा थे और जिन्होंने अपने शासन की जिम्मेदारियों को छोड़ कर भाग गये थे और इस पहाड़ी की गुफ़ा में छिप गए थे ताकि वे दुनिया के सभी मोह माया से मुक्त हो सकें।

मत्स्योदरी देवी का मंदिर, अंबाद

जम्ब समर्थ, घनसावंगी

समर्थ मंदिर यहां का एक मुख्य पर्यटक आकर्षण है जिसे संत रामदास की स्मृति में बनाया गया था जो सूर्यजीपंत थोसर कुलकर्णी और रानुबाई के छोटे बेटे थे। यहां सभी का मानना है कि उनका जन्म भगवान राम के जन्म के ही समय पर हुआ था। उनका असली नाम नारायण था। संत रामदास स्वामी के घर में बने राम मंदिर में हर साल राम नवमी पर एक लोकप्रिय मेला लगता है। इस मंदिर का निर्माण, श्री देवी अहिल्या बाई होल्कर की स्मृति में, माता रानी होल्कर द्वारा दिये गये दान से किया गया था। जो यहां का शानदार अनुभव पाना चाहते हैं उनके लिए यहां पर खाने-रहने की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।ऐसा कहा जाता है कि संत रामदास स्वामी का जन्म जाबं समर्थ में हुआ था, जो जालना जिले के घनसावंगी तहसील में है।

जम्ब समर्थ, घनसावंगी

नान्देड़ हुज़ूर साहब

इस गुरुद्वारे का निर्माण सिख साम्राज्य के नेता महाराजा रणजीत सिंह ने उस स्थान पर करवाया था जहांं सिख धर्म के अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी अंतिम सांस ली थी। एक धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह वह जगह है जहांं गुरु गोबिंद सिंह से गुरु ग्रंथ साहिब को 'गुरु' की उपाधि दी थी। गुरु गोबिंद सिंह जी ने यह महसूस किया कि मानव, भले ही कितना भी महान क्यूं न हों, नष्ट हो जाते हैं, लेकिन गुरु ग्रंथ साहिब में लिखे विचार कभी नष्ट नहीं होंगे। गुरु गोविंद सिंह जी ने पवित्र ग्रंथ पर 'गुरु' की उपाधि देते हुए नान्देड़ को 'अभचलनगर' यानी एक दृढ़ शहर की उपाधि दी। 'सचखंड' नाम का शाब्दिक अर्थ है सत्य का क्षेत्र।इसे ईश्वर के घर के रूप मे बताया गया था। सिख धर्म के अनुसार, सत्ता के पांच तख्त यानी आसन हैं। यह गुरुद्वारा, जिसे 'तख्त साहिब' के नाम से भी जाना जाता है, उन सभी में सबसे पवित्र है। यह गोदावरी नदी के पास स्थित है। अद्भुत सफेद संगमरमर से बना, इसके मुख्य मंदिर के गुंबद पर सोने की परत चढ़ी है। इस परिसर में दो और मंदिर हैं-पहला है बुंगा माई भागो जी, जिसमें गुरु ग्रंथ साहिब है, और दूसरा पंज प्यारे (पांच प्यारे) में से दो -अंगीता भाई दया सिंह और धर्म सिंह का है। इस दो मंजिला परिसर की सजावट अमृतसर के हरमंदिर साहिब यानी स्वर्ण मंदिर के समान है। भीतर के कमरे को अंगीठा साहेब कहा जाता है। इसकी दीवारें सुनहरी परतों से ढकी हुई हैं। यहां संरक्षित गुरु गोबिंद सिंह की वस्तुओं में एक सोने का कृपाण, एक मैचलौक बंदूक, एक जड़ाऊ इस्पात की ढाल और पांच सुनहले तलवार शामिल हैं। गर्भगृह को संगमरमर से सजाया गया है जो फ़ूलों की आकृतियों के साथ जड़ा हुआ है। दीवारों और छतों को प्लास्टर और टुकरी वर्क से सजाया गया है। दिन के दौरान, गुरु ग्रंथ साहिब को बाहर लाया जाता है और गर्भगृह के सामने एक कमरे में रखा जाता है। रात के समय इसे वापस गर्भगृह में रख दिया जाता है।

नान्देड़ हुज़ूर साहब