जामा मस्जिद भारत में वास्तुकला के अद्भुत उदाहरणों में से एक है। इसका निर्माण अहमद शाह प्रथम के शासनकाल में 1423 में हुआ था। यह मानेक चौक की पश्चिमी दिशा में स्थित है। शहर की भागदौड़ से दूर स्थित इस मस्जिद में इसके चार द्वारों से प्रवेश कर सकते हैं जो चारों दिशाओं में बने हुए हैं। यह मस्जिद पीले बलुआ पत्थर से इंडो-अरबी वास्तुशैली में बनी है। इसकी दीवारों एवं स्तंभों पर पेचीदा नक्काशी की गई है। मुख्य प्रार्थना कक्ष में 260 स्तंभ हैं, जिन पर 15 गुंबद बने हुए हैं। संगमरमर से बने चौड़े आंगन के आसपास दीर्घाएं बनी हुई हैं, जिनकी दीवारों पर अरबी में आयतें लिखी हुई हैं। अनुष्ठान शुद्धिकरण के लिए आंगन के बीचोंबीच एक कुंड बना है। मुख्य मेहराबदार प्रवेशद्वार पर बनी दो मीनारें 1819 में आए भूकंप में ध्वस्त हो गई थीं। अब केवल उनके निचले हिस्से ही बचे हैं।
इस मस्जिद में अनेक समकालिक तक्रव विद्यमान हैं, जो संभवतः दर्शकों को स्पष्ट न हो पाएं। बीच के कुछ गुम्बद कमल के पुष्पों की भांति बने हुए हैं, जो जैन मंदिरों में बने पारंपरिक गुम्बदों की तरह हैं। कुछ स्तंभों पर कड़ी से लटकी घंटी बनी हुई है, जो हिंदू मंदिरों में लगी घंटियों की भांति है।   

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