पुराने शहर के पोल

सुल्तान अहमद शाह प्रथम द्वारा करणावती पर विजय पाने तथा इसका नाम अहमदाबाद रखे जाने के बाद से इस शहर ने सदियों तक निरंतर उन्नति की। 1487 तक यह शहर सक्रा का प्रसिद्ध केंद्र बन गया था। सुल्तान शाह के पौत्र महमूद बेघर ने दुश्मनों के आक्रमण से बचने के लिए इस शहर की सीमाओं को सुदृढ़ करने का निश्चय लिया। दुश्मन के ख़तरे से बचने के लिए शहर के चारों ओर 10 किलोमीटर लंबी दीवार का निर्माण किया गया। आरंभ में इस दीवार में 12 द्वार तथा 189 बुर्ज थे। समय के साथ-साथ इस दीवार पर 6,000 से अधिक प्राचीर भी बनाए गए। यद्यपि, शहर का विस्तार नदी के दूसरे किनारे पर भी होने लगा तो दीवार का अधिकतर हिस्सा हटा लिया गया। वर्तमान में, नदी के किनारे पर स्थित दीवार के हिस्से पर केवल 12 द्वार ही विद्यमान हैं। इस दीवार की सीमा के भीतर स्थित शहर ही पुराना शहर कहलाता है। इसकी तंग गलियां तथा भीड़भाड़ वाली सड़कें आसानी से पहचानी जा सकती हैं। शहर के उक्रारपश्चिम किनारे पर विद्यमान ये 12 द्वार वृक्राकार इस प्रकार से हैंः शाहपुर गेट, दिल्ली गेट, दरियापुर गेट, प्रेम गेट, कालूपुर गेट, पांच कुआं गेट, सारंगपुर गेट, रायपुर गेट, अस्तोदिया गेट, महुधा गेट, जमालपुर गेट, खंजिया गेट, रायखड़ गेट, गणेश गेट एवं राम गेट। हर एक गेट पर नक्काशी की गई है तथा हस्तलिपि अंकित है। कुछ के तो छज्जे अब भी बरकरार हैं।

पुराने शहर के पोल

मोढेरा

सूर्य भगवान को समर्पित यह मंदिर मोढेरा गांव में है, जो अहमदाबाद शहर से 101 किलोमीटर दूर पुष्पावती नदी के किनारे पर स्थित है। वर्तमान में इस मंदिर में पूजा-अर्चना नहीं होती। इसका संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है तथा यह यूनेस्को विश्व विरासत धरोहर की सूची में शामिल है। इस मंदिर का निर्माण शिल्प एवं वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर किया गया था जो वास्तुकला व बनावट का प्राचीन विज्ञान है। संपूर्ण मंदिर देखने में ऐसा लगता है मानो जल में कमल खिल रहा हो। इसका मुख्य परिसर तीन भागों में विभाजित है। मंदिर का प्रवेशद्वार जो सभा मंडप कहलाता है, अंतराल जो गलियार है तथा गर्भगृह इसका पवित्र स्थल है। मंदिर परिसर एवं मूर्तियों से सुसज्जित जलकुंड सोलंकी राजाओं के काल में बने भवनों के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।      

मोढेरा

रानी नो हजीरो

बादशाह के मकबरे के पूर्व में रानी का मकबरा स्थित है। अन्य मकबरों की भांति रानी की कब्र इसके प्रांगण में बनी है न कि कमरे में। रानी के मकबरे की ओर जाने वाले मार्ग में राजपरिवार की अन्य महिला सदस्यों के भी मकबरे बने हुए हैं। वर्तमान में इस मार्ग पर रंग-बिरंगा बाज़ार स्थित है।  

रानी नो हजीरो

बादशाह नो हजीरो

जामा मस्जिद के पूर्व में बादशाह नो हजीरो अर्थात राजा का मकबरा स्थित है। कोई भी मस्जिद से सटे प्रवेशद्वार से इस मकबरे में जा सकता है। 1451 में बनाए गए परिसर में अहमद शाह प्रथम, उसके पुत्र मोहम्मद शाह द्वितीय एवं उसके पौत्र अहमद शाह द्वितीय के मकबरे स्थित हैं। इस परिसर का निर्माण मोहम्मद शाह के शासनकाल में बनाया गया था। इसमें राजपरिवार के अन्य पुरुष सदस्यों के भी मकबरे बने हुए हैं। इस परिसर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है और पुरुषों को भीतर जाने से पहले अपने सिर को ढकना आवश्यक होता है। केंद्रीय कक्ष के हर एक कोने में गुंबद के समान छोटे कक्ष बने हुए हैं जिनके मेहराब में छिद्रित पत्थरों का उपयोग किया गया है।

बादशाह नो हजीरो