अहमद शाह की मस्जिद

भद्रा किले की दक्षिणपश्चिम दिशा में बनी यह मस्जिद सुल्तान अहमद शाह द्वारा बनवाए गए वास्तुकला के अद्भुत उदाहरणों में से एक है। इसका निर्माण 1414 में करवाया गया था, जो अहमदाबाद की प्राचीन मस्जिदों में से एक है। यहां के प्रार्थना कक्षों, जो मेहराब कहलाते हैं, के फ़र्श काले व सफेद संगमरमर से बने हैं, जिन पर व्यापक रूप से नक्काशी की गई है। सभी प्रार्थना कक्षों में पत्थर के स्तंभ बने हैं तथा छत पर जाली का काम व अलंकृत नक्काशी की गई है। प्रत्येक प्रार्थना कक्ष में गुंबद की भांति बने हुए हैं। 
मस्जिद की पूर्वोक्रार दिशा में महिलाओं के लिए एक अलग से प्रार्थना कक्ष बना हुआ है जो जनाना कहलाता है। यह मस्जिद इसी उद्देश्य से बनाई गई थी कि राजपरिवार के सदस्य यहां प्रार्थना कर सकें। वर्तमान में यह मस्जिद पर्यटकों के प्रमुख आकर्षणों में से एक है।        

अहमद शाह की मस्जिद

जामा मस्जिद

जामा मस्जिद भारत में वास्तुकला के अद्भुत उदाहरणों में से एक है। इसका निर्माण अहमद शाह प्रथम के शासनकाल में 1423 में हुआ था। यह मानेक चौक की पश्चिमी दिशा में स्थित है। शहर की भागदौड़ से दूर स्थित इस मस्जिद में इसके चार द्वारों से प्रवेश कर सकते हैं जो चारों दिशाओं में बने हुए हैं। यह मस्जिद पीले बलुआ पत्थर से इंडो-अरबी वास्तुशैली में बनी है। इसकी दीवारों एवं स्तंभों पर पेचीदा नक्काशी की गई है। मुख्य प्रार्थना कक्ष में 260 स्तंभ हैं, जिन पर 15 गुंबद बने हुए हैं। संगमरमर से बने चौड़े आंगन के आसपास दीर्घाएं बनी हुई हैं, जिनकी दीवारों पर अरबी में आयतें लिखी हुई हैं। अनुष्ठान शुद्धिकरण के लिए आंगन के बीचोंबीच एक कुंड बना है। मुख्य मेहराबदार प्रवेशद्वार पर बनी दो मीनारें 1819 में आए भूकंप में ध्वस्त हो गई थीं। अब केवल उनके निचले हिस्से ही बचे हैं।
इस मस्जिद में अनेक समकालिक तक्रव विद्यमान हैं, जो संभवतः दर्शकों को स्पष्ट न हो पाएं। बीच के कुछ गुम्बद कमल के पुष्पों की भांति बने हुए हैं, जो जैन मंदिरों में बने पारंपरिक गुम्बदों की तरह हैं। कुछ स्तंभों पर कड़ी से लटकी घंटी बनी हुई है, जो हिंदू मंदिरों में लगी घंटियों की भांति है।   

जामा मस्जिद

सीदी सैयद की मस्जिद

1573 में बनी सीदी सैयद की मस्जिद नेहरू ब्रिज के पूर्वी किनारे पर स्थित है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि यह मुग़लकाल में अहमदाबाद में बनाई गई अंतिम प्रमुख मस्जिद थी। यद्यपि इसमें प्रांगण नहीं है और यह जामा मस्जिद की अपेक्षा काफ़ी छोटी है, फ़िर भी यह मस्जिद अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। इस मस्जिद के भीतर प्रतिष्ठित खिड़कियां बनी हैं, जिन पर पत्थर की पेचीदा नक्काशी की गई है। उनमें से एक ‘जीवन रूपी वृक्ष’ का प्रतिनिधित्व करती है। इस खिड़की पर जाली का काम एक ऐसे वृक्ष का प्रतिनिधित्व करता है जिसकी शाखाएं एक दूसरे में लिपटी तथा फैली हुई हैं। यह नक्काशी देखने में एक उत्कृष्ट लेस की भांति लगती है। इस मस्जिद का निर्माण गुजरात के सुल्तान के शासनकाल के अंतिम वर्ष में किया गया था। यह उस समय को दर्शाता है, जब मुग़ल सुल्तानों के अधीन गुजरात बहुत उन्नति कर रहा था।

सीदी सैयद की मस्जिद