साबरमती गांधी आश्रम भारत की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेज़ों के विरुद्ध महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए अहिंसावादी अभियान का मुख्य केंद्र रहा था। उनकी आभा मंडल अब भी इस आश्रम में विद्यमान है। कोई भी यहां पर भ्रमण करके उनकी विचारधारा एवं उल्लेखनीय जीवन के विशिष्ट पहलुओं से परिचित हो सकता है। ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, दक्षिण अफ्ऱीका से लौटकर गांधीजी ने अपना पहला आश्रम 25 मई, 1915 को कोचरब बंगले को बनाया था जो उनके वकील मित्र जीवनलाल देसाई का था। तब यह सत्याग्रह आश्रम कहलाता था। यद्यपि महात्मा गांधी की योजना पशुपालन और कृषि जैसी विभिन्न गतिविधियां चलाना चाहते थे, अतः उन्हें व्यापक जगह की आवश्यकता थी। 17 जून, 1917 को साबरमती नदी के किनारे 36 एकड़ भूमि पर नया आश्रम बनाया गया, इसलिए यह साबरमती आश्रम कहलाया।उनके अहिंसावादी अभियान के अलावा दांडी मार्च, जिसका आरंभ यहीं से हुआ था, से संबंधित दस्तावेज़ गांधी स्मारक संग्रहालय पर प्रदर्शित किए गए हैं। यहां पर एक पुस्तकालय भी है, जिसमें गांधीजी से संबंधित साहित्य रखा गया है। इनमें उनके द्वारा लिखे गए पत्रों का विशाल संग्रह सम्मिलित है, जो उपयोग में लाए गए काग़ज़ों पर लिखे गए थे। इस आश्रम के साथ हृदयकुंज, जहां पर गांधीजी रहा करते थे, विनोबा-मीरा कुटीर, जो अतिथि-गृह, प्रार्थना मैदान एवं एक भवन जिसका उपयोग कुटीर उद्योग के प्रशिक्षण केंद्र के रूप में किया जाता था भी स्थित है। इस आश्रम में गांधीजी कृषि में हाथ आजमाया करते थे, कताई व बुनाई की कला सीखते थे तथा खादी का उत्पादन किया करते थे। कुछ वर्षों पश्चात् उन्होंने इस आश्रम की देखरेख का काम हरिजन सेवक संघ के हाथों में सौंप दिया था। इसके निकट पर्यावरण स्वच्छता संस्थान तथा दुकान कलम कुश स्थित है, जहां पर चरखे के अतिरिक्त हाथ से बने काग़ज़ का उत्पादन व विक्रय किया जाता है। यहां पर खादी स्टोर हैं तथा खादी कातने की कार्यशाला भी आयोजित की जाती है।           

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