भारत वर्ष के कोने-कोने में इतिहास के नायाब निशान देखने को मिलते हैं। आप भले ही देश के किसी शहर में स्थित प्राचीन बाज़ार में चले जाएं, अथवा किसी संरक्षित महल को देखने जाएं, वहां पर आपको किंवदंती के निशान अवश्य देखने को मिल जाएंगे। हर एक कोने में गौरवशाली अतीत की झलक मिलेगी। इस बार विश्व विरासत दिवस पर, आइये अपनी विरासत का अवलोकन करें, अपनी परंपराओं का उत्सव मनाएं और जब हम भारत के विरासत शहरों को दोबारा देखेंगे तो निश्चित रूप से अपनी महान संस्कृति के सागर में डूब जाएंगे।

वाराणसी     

विख्यात लेखक मार्क ट्वेन, जो 19वीं सदी के अंतिम दशक में भारत आया था, उसने इस शहर का वर्णन इस प्रकार से किया था, ‘‘यह शहर इतिहास से भी प्राचीन है, परंपरा से भी प्राचीन है, यहां तक कि किंवदंती से भी प्राचीन है।’’ पावन गंगा नदी के किनारे पर स्थित वाराणसी शहर को देखकर वह अभिभूत हो गया था। दुनिया की सबसे प्राचीन आवासीय बस्तियों में से एक पावन शहर वाराणसी, सदियों से तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। लेखक अपनी पुस्तकों में वाराणसी का सार लिपिबद्ध करने का लंबे समय से प्रयास करते रहे हैं। 

भगवान शिव की नगरी कहे जाने वाला वाराणसी, देश के सात पवित्र नगरों में से एक है। वाराणसी शहर सदियों पुराने इतिहास, कला एवं परंपरा की पराकाष्ठा है जो उसकी आभा में रंगीन परतों को समाहित करने का काम करते हैं। इस शहर की आभा इसके घाटों पर प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देती है। पवित्रता एवं परमात्मा की खोज में तीर्थयात्री यहां आते हैं, गंगा के घाट वाराणसी के आध्यात्मिक परिदृश्य पर प्रकाश डालते हैं। प्रसिद्ध गंगा आरती से लेकर अंत्येष्टि तक, सदियों से ये धार्मिक अनुष्ठान इन घाटों पर किए जाते रहे हैं। किंवदंती के अनुसार भगवान शिव ही आकाशीय नदी गंगा को धरती पर लेकर आए थे, इसीलिए इसे पावन माना जाता है।

देशभर से हज़ारों श्रद्धालुगण यहां आकर पवित्र गंगा के जल में डुबकी लगाते हैं। ऐसी मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से किसी के भी पाप धुल जाते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि जिस किसी की भी यहां पर अंत्येष्टि की जाती है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। कई तो ऐसा मानते हैं कि पावन काशी की यात्रा (काशी की तीर्थयात्रा, वाराणसी आरंभ में काशी कहलाता था) अपने जीवनकाल में किए जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान होता है। हाल ही के वर्षों में, यह शहर दर्शन, योग, आयुर्वेद का प्राचीन औषधीय विज्ञान एवं ज्योतिष का ज्ञान कराने का प्रमुख केंद्र बन गया है।यह नगरी बौद्ध धर्म की सबसे पवित्र स्थली में से भी एक है। यह स्थली सारनाथ में थी, जो यहां से मात्र 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

यहीं पर भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। जैन-साहित्य में भी काशी का उल्लेख पावन नगरी के रूप में किया गया है, जो चार जैन तीर्थंकरों (संतों) की जन्मस्थली है। ऐसी मान्यता है कि 15वीं सदी के रहस्यवादी कवि एवं संत कबीरदास का जन्म भी इसी शहर में हुआ था।1400 ईसा पूर्व में स्थापित इस शहर का उल्लेख उपनिषद में भी बनारस के रूप में मिलता है। उस समय यह व्यापार एवं शिक्षा का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। अंततः इस शहर का नाम वाराणसी पड़ा और इसने भारतीय चेतना, विशेषकर प्राचीन दुनिया से सेतु के रूप में एक अहम स्थान प्राप्त किया। लेखक अपनी पुस्तकों में वाराणसी का सार लिपिबद्ध करने का लंबे समय से प्रयास करते रहे हैं। कबीर के दोहे से लेकर डीएन खत्री, हज़ारी प्रसाद द्विवेदी एवं जयशंकर प्रसाद जैसे गद्य लेखकों तक, भारत के कुछ बेहद लोकप्रिय लेखकों द्वारा सदियों से किए गए साहित्यिक कार्यों, शास्त्रों, काव्यों एवं ऐतिहासिक रचनाओं को इस नगरी ने बहुत प्रभावित किया है।

रेशमी बुनाई के लिए प्रसिद्ध इस नगरी में बनी ज़री की साड़ियां अधिकतर भारतीय दुल्हनों को उपहार स्वरूप दी जाती हैं। यह शहर पीतल व तांबे के बर्तनों, काष्ठ व मिट्टी के खिलौनों तथा स्वर्ण आभूषणों के लिए भी प्रसिद्ध है।प्रसिद्ध संगीतकार, मुग़ल राजदरबारों के संगीतकारों से लेकर वर्तमान समय की हस्तियों जैसे प्रतिष्ठित सितारवादक पंडित रविशंकर, शहनाई वादक बिस्मिल्लाह ख़ान एवं शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी वाराणसी के रहने वाले थे। आधुनिक व शास्त्रीय संगीत पर इसका इतना गहरा प्रभाव है कि वाराणसी को ‘संगीत की नगरी’ जैसी संज्ञा भी दी जाती है। वाराणसी को यह नाम यूनेस्को के ‘क्रिएटिव सिटीस नेटवर्क’ द्वारा दिया गया है।

अहमदाबाद

यूनेस्को द्वारा घोषित भारत के पहले विश्व विरासत शहर के रूप में अहमदाबाद अथवा अमदावाद इतिहास एवं परंपरा से परिपूर्ण है। सदियों पुरानी मस्जिदों तथा समकालीन हरावल की शानदार वास्तुकला का सहज मिश्रण पेश करने वाला, गुजरात का सबसे बड़ा शहर अनेक गतिविधियों वाला महानगर है। यह शहर साबरमती नदी द्वारा दो अलग हिस्सों में विभाजित है। नदी के पूर्वी तट पर अनोखा पुराना शहर स्थित है, जिसकी घुमावदार गलियां परंपरा व संस्कृति की की झलक प्रस्तुत हैं, जबकि पश्चिमी तट पर शानदार नया शहर बसा है, जिसने अपनी विश्वस्तरीय शहरी नियोजन के साथ अपने लिए एक विशेष जगह बनाई है। इसमें स्ट्रीट-फूड एवं रंग-बिरंगे बाज़ारों का समावेश करें तो अहमदाबाद पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन जाता है, जहां पर किसी को भी अनेक विकल्प प्राप्त हांगे।

पुराना शहर, वॉल सिटी भी कहलाता है यहां स्थित पोल इसकी विशेषता है जो समुदाय-आधारित आवास की एक प्राचीन प्रणाली है। शहर के चारों ओर बनी 10 किलोमीटर लंबी दीवार जिसमें 12 गेट, 189 बुर्ज तथा 6,000 से अधिक प्राचीर थे, कभी इस पुराने शहर की सुरक्षा किया करती थी। वर्तमान में हर एक गेट जिन पर कलात्मक नक्काशी, हस्तलिपि एवं कुछ के छज्जे बने हैं, उनके अवशेष गर्व से खड़े हैं। हालांकि शहर का पूर्वी हिस्सा पुराने गेटों व औपनिवेशिक युग की इमारतों के साथ अपने में पुराना-आकर्षण समेटे हुए है, जबकि पश्चिमी क्षेत्र में शैक्षिक संस्थाएं, आधुनिक वास्तुकला, आवासीय इलाके, मॉल, मल्टीप्लेक्स एवं व्यापारिक केंद्र स्थित हैं। आरंभ में अहमदाबाद का नाम कर्णावती था, राजा कर्णदेव प्रथम से यह क्षेत्र जीतने के बाद सुल्तान अहमद शाह ने 1411 के बाद इसका नाम बदल दिया।

अहमद शाह के शासनकाल में वास्तुकारों ने हिंदू शिल्पकला का फ़ारसी वास्तुशिल्प से मेल कराकर इंडो-अरबी शैली की उत्पत्ति की थी। यहां स्थित अनेक मस्जिदें इसी शैली को प्रतिबिंबित करती हैं।हालांकि अहमदाबाद 1960 से 1970 तक गुजरात की राजधानी रहा (वर्तमान में इससे सटा गांधीनगर राज्य की राजधानी है) किंतु गुजरात उच्च न्यायालय अब भी यहीं पर है और यह प्रदेश की आर्थिक राजधानी है। अंग्रेज़ों की दास्ता से मुक्ति पाने के लिए अहमदाबाद कभी भारत के स्वतंत्रता संग्राम का मुख्य केंद्र हुआ करता था। महात्मा गांधी शहर में बने साबरमती आश्रम में रहा करते थे। यहां के संपन्न वस्त्र उद्योग के लिए यह (पूर्व का मेनचेस्टर) भी कहलाता है।

इसके बल पर अहमदाबाद 21वीं सदी का नेतृत्व करता है। यह शहर अपने वैभव के लिए एवं नवरात्रि के समय भव्य व व्यापक आयोजन के लिए जाना जाता है। नवरात्रि खुले मैदान में आयोजित होने वाला सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक आयोजन होता है।

उज्जैन

प्रसिद्ध संस्कृत कवि कालिदास ने प्राचीन शहर उज्जैन के बारे में कहा है ‘‘पृथ्वी को स्वर्ग बनाने के लिए यह शहर स्वर्ग से उतर आया है।’’ मध्य प्रदेश राज्य के बीचों-बीच स्थित, यह प्राचीन शहर गलियों से भरा हुआ है। इन गलियों के हर कोनों पर मंदिर ही मंदिर दिखाई पड़ते हैं, इसीलिए उज्जैन का एक और नाम ‘मंदिरों का शहर’ भी पड़ा। हिंदू धर्म के सात पवित्र स्थलों में से एक, उज्जैन पवित्र क्षिप्रा (शिप्रा) नदी के तट पर बसा है, जो दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक समूह है।उज्जैन का इतिहास 600 ईसा पूर्व पुराना है। उस समय उज्जैन में सैकड़ों की संख्या में मंदिर थे।

एक समय में यह शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य के भी अधीन था। यहां तक कि सम्राट अशोक ने भी यहां शासन किया था। ऐसा कहा जाता है कि एक बार अशोक को उसके पिता बिन्दुसार ने किसी विद्रोह को दबाने के लिए उज्जैन भेजा था। विद्रोह तो सफलतापूर्वक दबा दिया गया लेकिन इस कोशिश में युवराज अशोक घायल हो गए थे। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा युवराज अशोक का इलाज किया गया। इसी दौरान अशोक पहली बार बौद्ध धर्म के सम्पर्क में आए और बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। चूंकि यह शहर विभिन्न शासकों के अधीन रहा है, इसीलिए इसकी समृद्ध विरासत के जीवंत कलाओं एवं शिल्पों में विविधता और अनोखापन है।

यह परंपरागत रूप से छपे वस्त्रों जैसे कि बाटिक, बाघ, भैरवगढ़ प्रिंट और स्क्रीन के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यहां से इन शिल्प शैलियों में से किसी भी शैली में छपी साड़ियों को ख़रीदा जा सकता है।

हम्पी
एक प्राचीन साम्राज्य के सत्ताकेंद्र और महान तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित एक पावन शहर रहे प्रागैतिहासिक हम्पी (कर्नाटक) में इतिहास और मिथकावली अठखेलियां करते हैं। खंडहर हो जाने के बावजूद, यहां की वैभवशाली इमारतें हम्पी के समृद्ध अतीत की गवाही देती हैं। युनेस्को द्वारा प्रमाणित इस विश्व विरासत स्थल के हर मोड़ पर इतिहास का कोई न कोई पन्ना खुलता है जैसे कि रानी का स्नानागार, शानदार कमल महल, शाही अस्तबल और एक ऐसा मंदिर, जहां कहते हैं कि शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। 

यहाँ की शानदार संरचनाएँ शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य (1336-1646 सदी) के तहत हम्पी के समृद्ध अतीत की गवाही में खड़ी हैं। हम्पी का उल्लेख हिंदू महाकाव्य रामायण में भी मिलता है। बताया जाता है कि वानर साम्राज्य किष्किन्धा यहीं स्थित था।हम्पी की यह भव्य स्थलीए दक्षिणी भारत के महत्वपूर्ण साम्राज्य, विजयनगर की अंतिम राजधानी थी। इसके समृद्ध राजाओं ने उत्कृष्ट मंदिरों एवं महलों का निर्माण किया, जिसकी चर्चा 14वीं और 16वीं शताब्दी के यात्रियों ने अपने यात्रा वृत्तांतों में की है।

हालांकि बाद में इसे लूटा गया, हम्पी में अभी भी 1,600 से अधिक स्मारक बरकरार हैं, जिसमें महलों, किलों, स्मारक संरचनाओं, मंदिरों, पवित्र स्थलों, स्तंभों वाले हॉल, स्नानागार और प्रवेश द्वार शामिल हैं। यहां के वास्तुशिल्पीय खंडहर, उस स्वप्नतुल्य परिदृश्य के समक्ष तैनात हैं, जो कई किलोमीटर लंबे ऊबड़-खाबड़ भू-भाग पर एक-दूसरे के ऊपर खतरनाक ढंग से टिके ढेरों विशालकाय शिलाखंडों से पटा पड़ा है। रॉक-क्लाइम्बर्स, ट्रेकर्स और अन्य साहसिक खेल प्रेमियों को ये आकर्षित करते हैं। इन चट्टानों की घिसी-पिटी रंगत के अलावा यहां उजड़े हरे रंग के खजूर के पेड़, केले के बागान और धान के खेत मिलते हैं। यह अलसाया शहर आज एक पर्यटक केंद्र है, जहां भक्तगण, रोमांच-प्रेमी और अनुभव-साधक खिंचे चले आते हैं।

पटना
बिहार की राजधानी पटना दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है। गंगा नदी के किनारे स्थित यह शहर आज भी अपनी विरासत, देशभक्ति और संस्कृति को गर्व से अपने हृदय में समेटे हुए है। भीड़-भाड़ वाले व्यस्त पटना शहर की विरासत दो हजार वर्ष पुरानी है। यह शहर कई धर्मों का केन्द्र रहा है। कई राजवंशों का गढ़ रहा, यह शहर कई संस्कृतियों और परंपराओं का खजाना है। इस शहर के हर कोने से प्राचीन बौद्ध, सूफी, जैन, सिख और हिंदू संस्कृतियों की झलक मिलती है। इस शहर ने आज भी अपने ऐतिहासिक आकर्षण को बरकरार रखा है। 

इस शहर में यहां की समृद्ध विरासत बहुतायत में मौजूद है। पटना शहर की विविधता शिक्षा से लेकर कला तक फैली हुई है। अशोक के शासनकाल में राजधानी कुसुमपुराय जिसे आज पटना कहते हैं, हुआ करती थी। फिर बाद में उसका नाम तब्दील होकर पुष्पपुर हो गया, जिसके बाद इसे पाटलिपुत्र और फिर अज़ीमाबाद कहा जाने लगा और अन्ततः इसका नाम पटना पड़ा।

गया 

अध्यात्म और शांति में डूबा एक शहर है गया, जो बिहार में पवित्र फल्गू नदी के किनारे पर स्थित है। गया एक प्रमुख हिन्दू तीर्थ है, जहां भगवान राम के चरण पड़े थे। विष्णुपद मंदिर यहां का सबसे प्रमुख मंदिर है और इसके अलावा भी बहुत सारे पवित्र स्थान इस क्षेत्र में मौजूद हैं। इनमें से ज्यादातर पवित्र स्थलों का नाता रामायण काल से रहा है और इन्हें लेकर कई तरह की किंवदंतियां और कथाएं प्रचलित हैं। एक लोकप्रिय मान्यता यह है कि भगवान राम ने यहां स्थित रामशिला पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंड-दान किया था और इसीलिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पिंड-दान के लिए आते हैं।

यहां का एक अन्य दर्शनीय स्थल वह अक्षय-वट है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह धरती का सबसे पुराना जीवित वृक्ष है।बिहार की राजधानी पटना से तकरीबन 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गया मंगला गौरी, श्रृंग-स्थान, राम-शिला और ब्रह्मयोनि नामक चार पहाड़ियों से घिरा हुआ है। कहा जाता है कि किसी समय मगध साम्राज्य (ईसा पूर्व 684-320) का हिस्सा रहे गया का नाम दैत्य गयासुर के नाम पर पड़ा, जिसका वध भगवान विष्णु ने किया था। यहां स्थित बहुत सारे जैन-मंदिरों के चलते यह स्थान जैनियों के लिए भी एक पवित्र स्थान का दर्जा रखता है।

जयपुर

ऐतिहासिक स्मारकों एवं बागों से घिरे महलों व किलों का शहर, जो राजपूत राजाओं की भव्यता की गवाही देता है, जयपुर भारत के राजसी विरासत का प्रवेश द्वार है। यूनेस्को ने हाल ही में इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किया है।राजस्थान की राजधानी जो गुलाबी नगरी भी कहलाती है, अपने में प्राचीनता को समेटे हुए है। इसकी विरासत भव्य हवा महल में संरक्षित है, जो जौहरी बाज़ार की अतिव्यस्ततम गलियों में शान से खड़ा है।

सिटी सेंटर, जहां आधुनिक सुविधाओं से सम्पन्न सिनेमाघर, मूवी थियेटर, रेस्तरां, मल्टीप्लेक्स, संग्रहालय एवं बाग हैं, उससे कुछ ही दूरी पर पहाड़ियों पर स्थित किले पहले से ही जयपुर के प्रहरी के रूप में विद्यमान हैं। इन किलों में सबसे बड़ा एवं बहुत प्रभावित करने वाला आमेर किला है, जो अपनी किलेबंदी और भव्यता से किसी को प्रभावित कर सकता है।