भारत में संस्कृतियों और विविधता का एक सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है। इसकी एक सुंदर और आकर्षक झलक, इसके विभिन्न वास्तु चमत्कारों में परिलक्षित होती है। लगभग हर ऐतिहासिक इमारत जो आज तक गर्व के साथ शान से खड़ी है, उसमें वास्तुकला का एक आकर्षण है। इन इमारतों को यह आकर्षण विभिन्न शासकों और राजवंशों ने प्रदान किया था, जिन्होंने यहां पर अपना शासन स्थापित किया था। हालांकि यूनेस्को ने उनमें से कई इमारतों को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है। यहां पर हम आपको कुछ ऐसे कम लोकप्रिय किलों के बारे में बता रहे हैं, जिनकी भव्यता और सुंदरता देखकर हर कोई अभिभूत हो जाएगा।

मंजराबाद किला, कर्नाटक
ऊपर से देखने पर यह किला सितारे की भांति लगता है। इसलिए यह स्टार फोर्ट के नाम से भी प्रसिद्ध है। कर्नाटक में स्थित यह बड़ा-सा दुर्ग टीपू सुल्तान ने बनवाया था। यह किला इस्लामिक वास्तुशिल्प की नायाब झलक प्रस्तुत करता है। यह किला अष्टकोणीय आकार में बना हुआ है। इसकी आठ दीवारें हैं। इस किले का अनोखापन यह है कि स्टार फोर्ट अन्य दुर्गों की भांति विभिन्न स्तर पर नहीं बनाया गया है।

अपितु इसका निर्माण एक ही स्तर पर किया गया है। देखने में यह ऊंचा-नीचा नहीं लगता बल्कि एक समान दिखाई देता है। किंवदंती के अनुसार अंग्रेज़ी सेना से अपनी सेना को बचाने के लिए ही टीपू सुल्तान ने यह किला बनवाया था। इसमें तोपें और गोला-बारूद रखा जाता था।इस किले को देखकर हर किसी को अनोखा अनुभव मिलेगा। यहां से पश्चिमी घाट तथा अरब सागर का सुंदर परिदृश्य देखने को मिलेगा। पर्यटक इस दुर्ग में बने विभिन्न कक्ष देख सकेंगे। यहां पर एक सुरंग भी है, जो श्रीरंगापटना किले तक जाती है। 

मुरुद जंजीरा किला, महाराष्ट्र 
अलीबाग से 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तटीय गांव मुरुद के एक टापू पर यह मुरुद जंजीरा किला फैला हुआ है। यह दुर्ग अरब सागर के बीच में स्थित एक विशाल चट्टान पर बनाया गया है।

इस किले की वास्तुकला समय की कसौटी पर खरी उतरी है, जिसके 19 गढ़ आज तक शान के साथ खड़े हैं। पर्यटक नौका की सवारी करके यहां पर पहुंच सकते हैं। वे दुर्ग की प्राचीर पर खड़े होकर यहां से अरब सागर के सुंदर परिदृश्य का भरपूर आनंद ले सकते हैं। 

भुजिया किला, गुजरातयह

किला भुज के बाहरी इलाके में बना हुआ है। पहाड़ियों के बीच में छिपा यह दुर्ग किसी रत्न से कम नहीं है। इस किले का निर्माण 1700-1800 सदी में इसलिए किया गया था ताकि मुग़ल, सिंध और राजपूत शासकों के हमलों से बचा जा सके। इस किले का निर्माण राव गोदजी प्रथम के नेतृत्व में किया गया था।

वर्तमान में यह दुर्ग भुजंगनाथ मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। नाग पंचमी के दौरान यहां पर विशेष प्रार्थनाएं होती हैं।यह किला एक पहाड़ी पर बना हुआ है, जहां से सारा भुज दिखाई देता है। किले तक जाने के लिए आपको 600 सीढ़ियां चढ़नी पड़ेंगी।

मट्टनचेरी पैलेस, केरल

कोच्चि में स्थित मट्टनचेरी पैलेस अथवा डच पैलेस, मलयालम-शैली की वास्तुकला का एक नायाब उदाहरण है। इसमें औपनिवेशिक प्रभाव का मिश्रण भी साफ देखने को मिलता है। इस पैलेस का भीतरी भाग बहुत सुंदर ढंग से सजाया गया है। इसमें 17वीं और 18वीं सदी के सुंदर चित्र लगाए गए हैं।

इनमें रामायण और महाभारत के दृश्यों को उकेरा गया है। इनके अलावा, पर्यटकों को कोचीन के उन राजाओं की आदम-कद की प्रतिमाएं भी देखने को मिलेंगी जिन्होंने 1864 से शासन किया। यहां पर आपको म्यानों के साथ तलवारें, खंजर और कुल्हाड़ी, पंखों से सजे हुए भाले, शाही टोपियां, कोच्चि के राजाओं के जारी किए गए सिक्के, चांदी से जड़ित गाउन, रेशम और पीतल से बने छाते तथा कोच्चि के लिए डच शासकों की बनाई गई योजनाओं के दस्तावेज़ भी देखने को मिलेंगे। उल्लेखनीय है कि राजा के विशाल शयन कक्ष में अनेक चित्र टंगे हुए हैं, जिनपर रामायण के दृश्य बने हैं। राज्याभिषेक कक्ष में कमल पर खड़ीं देवी लक्ष्मी, आराम करते भगवान विष्णु, भगवान षिव और देवी पार्वती की अर्धनारीष्वर वाली चित्रकला लगी हुई है। राज्याभिषेक कक्ष के विपरीत स्थित एक अन्य कक्ष में भगवान शिव, भगवान विष्णु एवं मां दुर्गा के चित्र भी लगे हुए हैं। इसमें एक अर्ध-निर्मित चित्रकला भी बनी हुई है। एक अन्य कक्ष में कुमारसंभव के चित्र तथा प्रसिद्ध कवि कालीदास के काम को प्रदर्शित किया गया है।

इस किले का निर्माण पुर्तगालियों ने किया था और इसे भेंट स्वरूप राजा वीरा केरला वर्मा (1809-1828) को प्रदान किया था। इसका नाम डच पैलेस इसलिए पड़ा क्योंकि इसे पुर्तगालियों ने बनाया था और इसमें कई बार बदलाव किए थे। यह पैलेस शाही परिवार की इष्ट देवी ‘पझयान्नुर भगवती’अर्थात पझयान्नुर की देवी को समर्पित किया गया था। 

कोंडापल्ली किला, आंध्र प्रदेश

कोंडापल्ली गांव के बीचोंबीच बना कोंडापल्ली दुर्ग बहुत ही शानदार है, जो देखने लायक जगह है। इस किले की विशाल प्राचीर पूरी तरह से ग्रेनाइट पत्थरों से बनी हुई है। आप जब इस गांव में प्रवेश करेंगे तो आपको यह दूर से ही दिखाई दे जाएगी। इस किले की अनेक विशेषताओं में से एक इसका मुख्य गेट है। यह दरगाह दरवाज़ा कहलाता है, जो ग्रेनाइट की एक विशाल चट्टान से बनाया गया है।

इसके अलावा इस किले में देखने लायक गोलकोंडा दरवाज़ा, गरीब साहेब की दरगाह और तनीषा महल भी हैं। इस किले का निर्माण 14वीं सदी में किया गया था। इसे दक्षिण भारत के योद्धा राजाओं, मुसुनूरी नायकों ने बनवाया था। यह दुर्ग कोंडापल्ली कोटा अथवा कोंडापल्ली किल्ला के नाम से भी प्रसिद्ध है।

दौलताबाद किला, महाराष्ट्रयह
भव्य किला 200 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना तथा 95 हेक्टेयर में फैला हुआ है। दौलताबाद की सामरिक स्थिति बहुत ही अहम थी और डक्कन में दृढ़ता कायम रखने के लिए यह मुख्य केंद्र था। इस किले को भेदना बहुत मुश्किल था। इसके आसपास और भीतर बड़ी पेचीदा संरचना की गई थी। इस किले की दीवार बहुत पक्की है, जो महाकोट कहलाती है। इस पर 54 बुर्ज बने हुए हैं। यह मज़बूत दीवार किले को घेरे हुए है और इसकी लंबाई लगभग 5 किलोमीटर है।

यह दीवार 6 से 9 फुट चौड़ी और 18 से 27 फुट ऊंची है। गोला-बारूद के डिपो तथा अन्न भंडार यहां के विभिन्न आकर्षणों में से एक हैं। ऐतिहासिक महत्व के इस किले को देखकर पर्यटक रोमांचित हो उठते हैं। हाथी हौद इस किले की एक और रोचक जगह है। यह एक विशाल जल कुंड है, जिसमें 10,000 क्यूबिक मीटर पानी एकत्रित करने की क्षमता है। आज कोई भी इसकी विशालता को देखकर हैरान रह जाता है। आप इस किले के पास ही बनी चांद मीनार देखने भी जा सकते हैं। यह मीनार 30 फुट ऊंची है। तुग़लक शासनकाल में बना शाही स्नानघर देखने लायक है। इसकी बनावट मनमोह लेती है। यहां मालिश कक्ष, गर्म पानी से स्नान करने वाला कक्ष तथा भाप लेने वाला कक्ष बना हुआ है।

यहां पानी की सुचारू आपूर्ति पाइप के जरिये होती थी, जो ज़मीन के नीचे बने जलकुंडों से जुड़े हैं। यहां पर रोशनी और हवा की भी पर्याप्त व्यवस्था थी। पर्यटक यहां पर खाई के अवशेष भी देख सकते हैं। इसके अलावा किले की दीवारें, सीढ़ीनुमा कुएं, दरबार, भारत माता को समर्पित मंदिर, सार्वजनिक सभागार, पानी के कुंड तथा चट्टान को काटकर बनाया गया रास्ता भी देखने लायक हैं। हाल ही में की गई खुदाई के माध्यम से मुख्य मार्गों और उप-गलियों से मिलकर एक निचला शहर परिसर भी सामने आया था।यह किला औरंगाबाद से एल्लोरा जाने वाले मार्ग पर स्थित है।

इसका निर्माण यादव शासक राजा भील्लमा वी ने 1187 ईस्वी में करवाया था। उस समय यह शहर देवगिरी यानी देवताओं का स्थल के नाम से प्रसिद्ध था। इतिहास गवाह है कि रणनीतिक महत्व के कारण समय-समय पर इस किले पर अनेक शासकों ने राज किया। दिल्ली के शासक मोहम्मद तुग़लक इससे इतना प्रभावित हुआ था कि उसने दौलताबाद को ही अपनी राजधानी बना लिया था। उसने दिल्ली की समस्त जनता को यहां पर आकर बसने का आदेश जारी कर दिया था।

उसके बाद इस पर हसन गंगू के नेतृत्व में ब्राह्मणी शासकों का राज स्थापित हुआ। तत्पश्चात अहमदनगर के शासक निज़ाम शाही का राज रहा। उसके बाद मुग़ल शासक औरंगजे़ब ने चार माह तक इसके आसपास डेरा डाला और तब जाकर इस पर उसका राज हुआ। मराठा षासकों ने उससे यह किला छीन लिया और 1724 ईस्वी में हैदराबाद के निज़ाम ने उनसे भी यह किला हथिया लिया था।