यमुनोत्री भारत के प्रमुख आध्यात्मिक स्थलों में से एक है और गढ़वाल हिमालय के पश्चिमी किनारे पर स्थित है। लगभग 3,293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, यह उच्च पर्वत चोटियों, हिमनदों और प्राचीन यमुना नदी को समेटे हुए है और यह उसके लिए गर्व की बात है। यमुनोत्री वह स्थान है जहां भारत की दूसरी सबसे पवित्र नदी, यमुना का उद्गम स्थल है,  और इस तरह यमुनोत्री हिंदुओं द्वारा की जाने वाली प्रसिद्ध चार धाम तीर्थयात्रा का एक-चौथाई हिस्सा बनती है।

यमुना नदी यमुनोत्री हिमनद से बहना शुरू करती है जिसकी ऊंचाई लगभग 6,387 मीटर है। यहां से, नदी सप्तऋषि कुंड में गिरती है और फिर कई झरनों के रूप में दक्षिण की ओर बहती है।यमुनोत्री में प्रमुख आकर्षण देवी यमुना को समर्पित एक मंदिर है, जिसे सूर्य देव की बेटी और यम (मृत्यु के देवता) की जुड़वां बहन माना जाता है। आंतरिक गर्भगृह में यमुना देवी की एक पवित्र मूर्ति स्थापित है। मूर्ति चिकने काले आबनूस से बनी है और उस पर बारीक नक्काशी की हुई है। मंदिर के दोनों तरफ दो बहुत ही सुंदर झरने, सूर्य कुंड और गौरी कुंड हैं। भक्त उन झरनों के उबलते पानी में चावल और आलू डुबोते हैं और यमुना की मूर्ति को उन्हें अर्पित करते हैं। यह एक तरह से वहां की प्रथा ही बन गई है। इस भोजन को फिर भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। मंदिर का निर्माण 1839 ईसवी में प्रसिद्ध गढ़वाल नरेश सुदर्शन शाह ने करवाया था। बाद में यह एक भूकंप में ढह गया और 19वीं शताब्दी में जयपुर की महारानी, ​​गुलेरिया देवी ने इसका पुनर्निर्माण कराया। मंदिर वास्तुकला के नागर नमूने का बेहतरीन उदाहरण है और यह ग्रेनाइट से बना है। मंदिर के शीर्ष पर एक मध्यम शंक्वाकार आकार की मीनार पर्यटकों का ध्यान खींचती है, जो हलके पीले रंग की है और जिस पर लगा चमकीला सिंदूर उसे और सुंदर बनाता है।

अन्य आकर्षण