12वीं शताब्दी में क्षिप्रा नदी के उस पार भगवान गणेश का एक प्रमुख मंदिर बनाया गया, जिसका नाम बड़ा गणेश मंदिर रखा गया। यह मंदिर दूर दराज़ के भक्तों को आकर्षित करता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार गर्भगृह में विराजमान भगवान गणेश की मूर्ति स्वयंभू (स्वयं प्रकट) है। इसके दोनों ओर प्रभु की सहचरियां, रिद्धि और सिद्धि विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश की इस स्वयंभू मूर्ति में काशी, अयोध्या, अवंतिका और मथुरा के तीर्थ स्थलों के तत्व शामिल हैं और सोने और चांदी के चिह्न भी हैं।

मंदिर की वास्तुकला बहुत भव्य है। यह प्राचीन सफेद संरचना इतनी भव्य है कि कोई भी आश्चर्य में पड़ जाऐगा। इस मंदिर परिसर के प्रवेश द्वार पर बुर्ज और पत्थर के खंभों पर बारीक नक्काशी मौजूद है। इस मंदिर परिसर के मुख्य भाग में एक पांच मुखों वाली (पंचमुख) भगवान हनुमान की एक कांस्य प्रतिमा है। इसके साथ ही मां यशोदा की गोद में विराजमान भगवान कृष्ण की प्रतिमा है। पर्यटक इस मंदिर परिसर में संस्कृत और ज्योतिष विद्या का भी अध्ययन कर सकते हैं।

अन्य आकर्षण